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परेशानियों से दो-चार थीं हरदम, सपनों को बुन बढ़ाए बेहतर भविष्य की ओर कदम

locationगुवाहाटीPublished: Aug 17, 2019 09:22:24 pm

Submitted by:

Nitin Bhal

North East: पूर्वोत्तर का छोटा सा गांव चिजामी, जो बरसों तक लोगों के लिए अनजान रहा। हो भी क्यों ना, एक आम गांव जिसकी आम सी समस्याएं थीं। लेकिन गांव की महिलाओं…

Weaving a Better Future for Hundreds of Naga Women

परेशानियों से दो-चार थीं हरदम, सपनों को बुन बढ़ाए बेहतर भविष्य की ओर कदम

कोहिमा. पूर्वोत्तर का छोटा सा गांव चिजामी, जो बरसों तक लोगों के लिए अनजान रहा। हो भी क्यों ना, एक आम गांव जिसकी आम सी समस्याएं थीं। लेकिन गांव की महिलाओं ने ऐसा कर दिखाया कि करीब 600 घरों और 3000 की आबादी वाला नगालैंड का छोटा सा गांव अब लोगों के लिए रोल मॉडल है। यहां के विकास के मॉडल ने लोगों का ध्यान खींचा है। हालात यह हैं कि अब सालभर यहां लोगों का आना-जाना लगा रहता है। लोग यहां से कुछ न कुछ सीख लेकर जाते हैं। गांव के विकास की इस कहानी की नायिका हैं मोनिशा बहल, जिन्होंने गांव की महिलाओं को साथ लेकर विकास की नई इबारत लिखी। यहां का विकास मॉडल स्वास्थ्य, महिला अधिकार, सामुदायिक कार्यक्रम, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को भी समेटे है। आर्थिक रूप से हाशिए पर खड़ी महिलाओं ने डॉ. बहल के नेतृत्व में गांव के परिवर्तन में अपना दिल, खून और पसीना एक साथ डाला और खुद को सक्षम बनाया। यहां की पारंपरिक बुनाई को सहारा बना बहल ने महिला अधिकारों की आवाज बुलंद की और एक बेहतर भविष्य का सपना बुना। चिजामी में सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण सुधार के बीज 1990 के दशक के मध्य में पड़े, जब महिला अधिकार कार्यकर्ता और नॉर्थ ईस्ट नेटवर्क ( NEN ) की संस्थापक मोनिशा बहल नगालैंड में महिला स्वास्थ्य मानकों में सुधार के उद्देश्य से यहां आईं।

पहचानी महिलाओं की ताकत

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नगा समाज में महिलाओं की सामूहिक ताकत को देखते हुए डॉ. बहल ने उस समय राज्य में व्याप्त विक्षिप्त स्वास्थ्य और स्वच्छता पर्यावरण के बारे में कुछ करने के लिए इसका उपयोग करने का निर्णय लिया। यहां बहल की मुलाकात सेनो त्साह से हुई। सेनो चिजामी वुमंस सोसायटी की प्रतिनिधि थीं और उन्होंने चिजामी के पास सुमी गांव में अध्यापन का काम किया था। उनकी बातचीत एक साझेदारी के रूप में खिल गई। जिसने न केवल एनइएन के नगालैंड चैप्टर को स्थापित किया बल्कि चिजामी के भाग्य को बदलने की दिशा में कदम बढ़ाया। यह वह समय था जब नगालैंड छह दशक लंबे संघर्ष की स्थिति से बाहर आ रहा था। बहल और सेनो जानते थे कि सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाने और युवाओं को सशक्त बनाने में कई चुनौतियां थीं। शुरुआत में स्वास्थ्य, स्वच्छता और पोषण में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। इसके बाद बांस शिल्प, खाद्य प्रसंस्करण, जैविक खेती, छत पर जल संचयन और कम लागत वाली स्वच्छता जैसे कौशल संवर्धन कार्यक्रम शुरू किए। इसके अलावा शासन, महिला सशक्तीकरण और मानवाधिकार जैसे विषयों पर भी सेमिनार आयोजित किए।

मिली ऐतिहासिक कामयाबी

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बहल की एक ऐतिहासिक उपलब्धि यह थी कि आठ साल के संघर्ष के बाद गांव की महिलाओं को आखिरकार 2014 में ग्राम सभा द्वारा अकुशल कृषि श्रम में पुरुषों के समान वेतन दिया गया। इसके दो साल बाद एनहुलमी ग्राम सभा में दो महिलाओं को सदस्य के रूप में शामिल किया गया। महिला सशक्तीकरण की भावना को और आगे ले जाते हुए डॉ. बहल ने जिले में हाशिए पर पड़ी महिलाओं के लिए स्थायी आजीविका के अवसर पैदा करने के लिए एक विकेन्द्रीकृत आजीविका परियोजना ‘चिजामी वीव्स’ को हरी झंडी दिखाई और नगालैंड की अनूठी वस्त्र परंपरा को संरक्षित किया। सात बुनकरों के साथ शुरू होने वाले चिजामी वीव्स के पास आज चिज़ामी और फ़ेक जिले के 10 अन्य गांवों में 300 से अधिक महिलाओं का एक मजबूत नेटवर्क है। जिनके द्वारा बनाए गए स्टॉल, कुशन कवर, बेल्ट, बैग, मफलर, कोस्टर, टेबल मैट की नई दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु और मुंबई में भी धाक है।


आजीविका के साथ समाज भी बदल रही महिलाएं

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बहल की इस परियोजना ने महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय की नई धारणाओं को लाने में भी मदद की है। महिला बुनकर अपनी बुनाई के माध्यम से अपने परिवारों को सहारा दे रही हैं। वहीं, स्वास्थ्य, आजीविका और पर्यावरण के मुद्दों पर अपनी आवाज उठाकर समाज में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। नगालैंड में स्थायी आजीविका का समर्थन करने, पारंपरिक खाद्य प्रणालियों और कृषि पद्धतियों को बहाल करने में महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने में चिजामी आज सबसे आगे है। चिज़ामी में एनइएन संसाधन केंद्र, राज्य में विकास और परिवर्तन का एक केंद्र बन चुका है।

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