अंग्रेजी में देना पड़ता था शोध पत्र
गौहाटी विश्वविद्यालय देश का एकमात्र ऐसा विश्वविद्यालय रहा है, जहां पर हिन्दी में शोध करने वाले शोधार्थियों को अपना शोधपत्र अंग्रेजी में तैयार कर देना पड़ता था। यह शोधार्थियों के लिए जटिल कार्य था। शोधार्थी पहले पूरा शोधपत्र अपनी भाषा में तैयार करते थे, फिर उसे अंग्रेजी में अनुवाद कराके जमा करते थे।
राज्यपाल के हस्तक्षेप से खुला रास्ता
असम के राज्यपाल और गौहाटी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो जगदीश मुखी के हस्तक्षेप के बाद विश्वविद्यालय के शैक्षणिक परिषद ने हिन्दी का शोधपत्र हिन्दी में जमा करने का प्रस्ताव 29 जून की अकादमिक परिषद की बैठक में पारित कर दिया। हिन्दी के साथ बांग्ला और संस्कृत के शोधार्थियों को भी शोधपत्र इन्हीं भाषाओं में जमा कराने की अनुमति मिल गई है। इस निर्णय का अन्य विद्यार्थियों को भी लाभ मिल सकेगा।
आंदोलन करने पड़े
इसकी मांग काफी अरसे से की जा रही थी। कई बार इसके लिए आंदोलन तक हुए, लेकिन मामला विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद में जाकर फंस जाता था। दरअसल विश्वविद्यालय की शैक्षणिक परिषद में विरोध बांग्ला को लेकर था। इसका खामियाजा हिन्दी को भुगतना पड़ रहा था। लेकिन इस बार वैसे सभी विभागों के शोधार्थियों ने मिलकर अपनी भाषा में शोधपत्र लिखने के लिए अभियान चलाया और राज्यपाल से हस्तक्षेप का आग्रह किया। राज्यपाल प्रो जगदीश मुखी ने त्वरित पहल की और गौहाटी विश्वविद्यालय के कुलपति मृदुल हजारिका को इस संबंध में कदम उठाने का निर्देश दिया।