कागजों में दर्ज नहीं होती यह कमियां
– लंबाई के अनुसार वजन में कमी वाले बच्चों की संख्या कुल संख्या का करीब 49 प्रतिशत हिस्सा है, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में बमुश्किल दो से तीन हजार बच्चों को ही दर्ज किया जाता है। बच्चो की भुजा की माप का ब्यौरा सरकारी दस्तावेजों में सही दर्ज नहीं किया जाता है।
– 54 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य जांच पहले तीन महीने में होना चाहिए, इसकी भरपाई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता महिला का नाम पता लिखकर कर लेती हैं, स्वास्थ्य जांच कराने के लिए महिलाओं के परिजन या तो स्वयं सरकारी अस्पताल ले जाते हैं, या फिर निजी क्लीनिक में डॉक्टर से जांच कराते हैं।
सर्वे में हर बार निकलती हैं पुरानी खामियां
1. बालिकाओं में खून की कमी, बच्चों में कुपोषण और गर्भवती-धात्री माताओंं के स्वास्थ्य को लेकर बीते तीन वर्ष में चार बार सर्वे हो चुका है। हर बार कमियां मिली हैं। घाटीगांव, भितरवार, डबरा, मुरार और नगर निगम के आसपास बसी आदिवासी बस्तियों में कुपोषण की स्थिति लगातार बनी हुई है। स्थिति यह है कि हर तीसरी किशोरी का हीमोग्लोबिन 4.5 से लेकर 5.5 के आसपास निकलता है। जबकि 0 से 5 साल तक के बच्चों की बांयी भुजा की गोलाई की माप 11.5 सेमी की जगह 7 से 9 सेमी के बीच निकलती है।
2. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सही खुराक न मिलने की बजह से खून की कमी सहित अन्य संक्रामक बीमारियों लगातार बनी हुई है। गर्भवती माताओं को डिलेवरी के समय बेहतर खानपान के लिए मिलने वाली राशि भी समय पर नहीं मिल रही है।
यह हैं सरकारी निर्देश
– समूहों के माध्यम से तीन से छह साल के बच्चों को रेडी टू ईट पूरक पोषण आहार दिया जाए।
– पात्र हितग्राहियों को 15 दिन के अंतराल से टेक होम राशन दिया जाए।
– बच्चों का वजन लेकर पोषण स्तर की निगरानी और टीकाकरण किया जाए।
– आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लोगों के घर जाकर कोरोना संक्रमण से बचाव की सलाह दें।
– अल्पकालीन, दीर्घकालीन और तुरंत किए जाने वाले लक्ष्य निर्धारित किए जाएं।
– तिमाही, छमाही और वार्षिक कार्ययोजना के हिसाब से काम किया जाए।
इन कामों में जारी है उदासीनता
– आंगनबाड़ी केन्द्रों पर पूरक पोषण आहार, पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा,स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण, शाला पूर्व शिक्षा सहित अन्य सेवाएं दी जानी चाहिए। लेकिन जिले के अधिकतर केन्द्रों पर पोषण आहार के कुछ पैकेट बांटकर ही काम पूरा किया जा रहा है। अन्य महत्वपूर्ण कामों को लेकर लगभग प्रत्येक केन्द्र पर रजिस्टरों में खानापूर्ति ही की जा रही है।
– कोरोना संक्रमण काल में आंगनवाड़ी पर्यवेक्षक, सीडीपीओ, डीपीओ वास्तविक काम की बजाय अन्य कामों मेंं लगे रहे हैं। गर्भवती माताओं के स्वास्थ्य जांच, किशोरी बालिकाओं में खून की कमी और बच्चों को बेहतर पोषण प्रदान करने में लगातार लापरवाही अपनाई जा रही है।
मॉनिटरिंग जारी है
बच्चों के पोषण को लेकर लगातार मॉनिटरिंग जारी है। कोविड के समय में भी शासकीय निर्देशानुसार टेक होम राशन प्रदाय किया गया है। स्तनपान सप्ताह के साथ साथ पोषण अभियान के लिए भी टीमें जुट गईं हैं।
राजीव सिंह, जिला कार्यक्रम अधिकारी-महिला बाल विकास