इन्यूनिटी पॉवर लगातार घटने के कारण लगभग हर तीसरा बच्चा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित है। सरकारी आंकड़ों में सब ठीक बताया जा रहा है, जबकि जमीनी धरातल पर कुपोषण में 20 फीसदी सुधार भी नहीं हुआ है।
बरई, भितरवार, डबरा और मुरार ब्लॉक के आदिवासी बाहुल्य गांवों में कुपोषण की स्थिति लगातार पैर पसार रही है और रूट लेबल पर काम करने वाले महिला बाल विकास विभाग के कार्यकर्ता, पर्यवेक्षक, सीडीपीओ बच्चे के जन्म से लेकर पांच साल तक टालमटोल में निकाल रहे हैं, इसके बाद भी बच्चा सरवाइव कर जाए तो आयु सीमा से बाहर होने का बहाना बनाकर बच निकलते हैं। ग्वालियर जिले में जन्म से 28 दिन के भीतर करीब 32 बच्चे, 1 साल की उम्र से पहले 48 और पांच साल की उम्र पूरा करने से पहले करीब 63 बच्चे दम तोड़ देते हैं।
कुपोषित के अलावा केन्द्रों पर1 लाख 4 हजार 640 बच्चे भी पंजीकृत हैं, जिनके नाम पर आने वाले पोषण आहार में से 70 फीसदी आहार की रकम समूह और अधिकारियों की मिलीभगत से हड़पा जा रहा है।
यह हो तो बने बात
पोषण (प्रोटीन और कैलोरी), सामान्य स्वास्थ्य की सही देखभाल, अति कुपोषित और कुपोषित बच्चों का सही तरीके से उपचार और फॉलोअप जरूरी है।
फूड सिक्योरिटी कंसेप्ट के तौर पर लागू किया जाना आवश्यक है।
सेवा की जगह व्यवसाय के रूप में काम कर रहे समूहों में सेवा भावना लाना जरूरी है।
इस बजट का हो सही इस्तेमाल (योजना समिति से अनुमोदित)
एक नजर कमियों पर = 0-3 साल के बच्चों के लिए रेडी टू ईट फूड की गुणवत्ता बेहद खराब होती है।
= आईसीडीएस के सिस्टम पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर पाता, क्योंकि जिम्मेदारी सामने आने पर अधिकतर अधिकारी या कर्मचारी सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन के नाम पर बच जाते हैं।
= आईसीडीएस के सिस्टम पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर पाता, क्योंकि जिम्मेदारी सामने आने पर अधिकतर अधिकारी या कर्मचारी सप्लीमेंट्री न्यूट्रीशन के नाम पर बच जाते हैं।
= बच्चों के पोषण आहार में सेंध लगाने वाला संगठित गिरोह काम कर रहा है, जो सप्लाई और भोजन तैयार करने के नाम पर सरकारी खजाने को चूना लगा रहा है। एक नजर इंतजामों पर
मार्च से पहले जिले की 10 परियोजनाओं की रिपोर्ट में पहले 3 हजार759 बच्चे अतिकम वजन के दर्ज हुए थे।
स्नेह सरोकार के अंतर्गत 2060 बच्चे गोद लिए गए जिनकी वर्तमान स्थिति की सही जानकारी किसी अधिकारी को नहीं है।
स्नेह सरोकार के अंतर्गत 2060 बच्चे गोद लिए गए जिनकी वर्तमान स्थिति की सही जानकारी किसी अधिकारी को नहीं है।
कुपोषण दूर करने के लिए बीते वर्ष जहां 231 शिविर लगाए गए थे, वहीं इस साल अब तक 131 शिविरों का आयोजन हुआ है।
शिविरों में इस दौरान अकेले ग्वालियर में ही 26 हजार 274 बच्चे कुपोषित और 1954 बच्चे अति कुपोषित सामने आए हैं।
कुपोषण दूर करने के लिए 4 हजार 47 कुपोषित और 1018 अति कुपोषित बच्चों के परिजन से मिलकर विशेष सलाह दी गई।
गांवों में जाने पर लगभग हर दूसरे व्यक्ति द्वारा सबसे ज्यादा शिकायत आंगनवाड़ी केन्द्र पर अनियमितता और अधिकारियों की लापरवाही की है।
इस आधार पर होना चाहिए जांच
एमयूऐसी टेप : मिड-अपर आर्म सरकमफेरेस। इंचीटेप जैसे इस छोटे टेप से बच्चे की भुजा की माप लेते हैं और बाजू की मेाटाई 11.5 सेमी या इससे कम होती है तो वह बच्चा अतिकुपोषित माना जाता है।
लंबाई-वजन : बच्चे की लंबाई और फिर उसका वजन किया जाता है। लंबाई के हिसाब से बच्चे का वजन बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा तो कुपोषण की निशानी है। ठ्डिना टेस्ट : इसके तहत बच्चे के पैर के पंजे के ऊपर हाथ के अंगूठे से दबाकर सूजन देखी जाती है। दबाने के बाद पंजे में गड्ढा पड़ जाता है तो कुपोषण और खून की कमी मानी जाती है.
सिंधिया लिख चुके हैं केन्द्र को पत्र कुपोषण को दूर करने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और गुना-शिवपुरी सासद ज्योतिरादित्य सिंधिया केन्द्रीय महिला बाल विकास को पत्र लिख चुके हैं। इसके बाद भी प्रदेश के ग्वालियर संभाग में प्रयास नहीं हुए हैं।