4 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे पहले गाली नहीं देते थे, लेकिन ओटीटी प्लेटफार्म पर लगातार सीरियल आदि देखते देखते अब वे भी गाली देने लगे हैं। लोगों की मनोस्थिति को समझने के लिए हार्टबीट फाउंडेशन ने 200 से अधिक लोगों से बात करके पांच लोगों ने यह तो बताया कि उनको गाली देने की आदत है, लेकिन साथ में यह भी कहा कि अगर कोई दूसरा गाली देता है तो बहुत बुरा लगता है।
प्रति व्यक्ति पांच मिनट का समय
मनौवैज्ञानिक काउंसलर और वालंटियर्स ने तीनों उपनगरों के पॉश, मध्यम, निम्न मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों के बीच जाकर लोगों से बात की। अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों से प्रश्न पूछे। सबसे ज्यादा फोकस युवाओं पर रहा। लोगों को सर्वे फार्म दिए गए और स्पॉट पर ही भरवाए गए। इसके बाद प्रति व्यक्ति पांच मिनट तक औसतन बात की गई, इस दौरान यह नोट किया गया कि बातचीत के दौरान कितनी बार गाली दी है।
यह स्थिति आई सामने
68 प्रतिशत युवाओं ने कहा सामान्य बोलचाल में गाली प्रश्न पूछे। इन प्रश्नों के जवाब में देते हैं।
32 प्रतिशत युवाओं ने कहा वे गालियां नहीं देते।
96 प्रतिशत युवाओं ने बताया बचपन में ही गालियां देना सीख गए थे।
48 प्रतिशत युवाओं ने कहा गुस्सा आने पर वे गालियां देते हैं।
24 प्रतिशत युवाओं ने कहा वे मजे के लिए गालियां देते हैं।
54 प्रतिशत युवाओं को यह पता ही नहीं है कि गाली देना भी अपराध की श्रेणी में है।
आलोक बैंजामिन, मनौवैज्ञानिक काउंसलर और अध्यक्ष- हार्टबीट फाउंडेशन का कहना गालियों का परोक्ष से ज्यादा अपरोक्ष प्रभाव ज्यादा पड़ता है। यह सामान्य व्यवहार में शामिल होने की वजह से लोगों को यह पता ही नहीं चलता कि वे कितनी बड़ी बुराई से ग्रसित हैं। इसके लिए हमने मेंटल हैल्थ प्रोग्राम शुरू किया है। जिसके माध्यम से लोगों की मानसिक स्थिति का अध्ययन करके उसका समाधान ढूंढने की कोशिश करेंगे।