– 552 गांव जिले में हैं।
– 256 पंचायतें हैं।
– 1 पंचायत में औसतन 2 गांव शामिल हैं।
– 5 अधिकारी-कर्मचारी करते हैं हर पंचायत की मॉनीटरिंग
– 2009 से अब तक 68 करोड़ रुपए की लग चुकी है खजाने को चपत
ये हैं जिम्मेदार
सरपंच
-ग्राम पंचायत में सभी विकास कार्य कराने की जिम्मेदारी सरपंच की होती है। काम स्वीकृत होने के बाद 95 प्रतिशत से अधिक सरपंच खुद ही ठेकेदार बनकर कामों की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं और बाद में सभी सरकारी कडिय़ों को आपस में जोड़कर दस्तावेजों में सब सही करवा लेते हैं। जबकि कामों की स्थिति यह है कि कोई भी सीमेंट-कांक्रीट रोड ऐसी नहीं बनी है, जो पूरे पांच साल तक टिक पाई हो।
सचिव
पंचायत के प्रत्येक काम की गुणवत्ता को निश्चित करने की जिम्मेदारी सचिव की है। लेकिन सचिव सरपंच के साथ मिलीभगत करके गुणवत्ता पर ध्यान ही नहीं देते और सरकारी खजाने से राशि निकालकर लगातार खर्च दिखाते रहते हैं।
ग्राम रोजगार सहायक
मनरेगा से संबंधित सभी कामों को कराने की जिम्मेदारी ग्राम रोजगार सहायक की है। सरपंच,सचिव के मार्गदर्शन में होने वाले सभी कामों की रिपोर्ट जिला मुख्यालय को भेजते हैं, लेकिन इनका भी हिस्सा तय होने से कोई भी रिपोर्ट सटीक तरीके से मुख्यालय पर नहीं पहुंचती।
ब्लॉक कोऑर्डिनेटर
पंचायतों की मॉनीटरिंग की जिम्मेदरी पंचायत समन्वय अधिकारी, विकासखंड समन्वयक की होती है, लेकिन इनकी संख्या कम होने से सभी पंचायतों की मॉनीटरिंग होती ही नहीं है। बगरै स्थल पर जाए रिपोर्ट लगाने के बदले में पंचायत कर्मियों द्वारा इनको साधा जाता है।
इंजीनियर
आरईएस के इंजीनियर कामों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने के लिए मूल्यांकन प्रमाणपत्र पंचायत को देते हैं। इंजीनियरों के बमुश्किल चार से पांच प्रतिशत प्र्रमाणपत्र ही गुणवत्ता पर खरे उतरते हैं, बाकी के लगभी सभी मूल्यांकनों में 35 से 65 प्रतिशत तक गोलमाल होता है।
मिलीभगत से जारी हो रहे उपयोगिता प्रमाणपत्र
पंचायत में आवास और शौचालय आदि बनने के बाद संबंधित जनपद के उपयंत्री से मूल्यांकन कराने के बाद उपयोगिता प्रमाणपत्र बनता है। जिले की सभी पंचायतों में शौचालय और आवास का परिणाम लगभग 98 प्रतिशत रहा है। जबकि हर पंचायत में आवास की राशि किसी ठेकेदार द्वारा निकाले जाने को लेकर ग्रामीण परेशान हैं। खासकर पिछड़े क्षेत्रों में सरपंच-सचिव और जीआरएस के गठजोड़ ने आदिवासियों को जमकर ठगा है। इसकी जांच करने वाले इंजीनियर भी निश्चित सुविधा मिलने के बाद उपयोगिता प्रमाणपत्र जारी कर रहे हैं। बाद में शिकायत करने वाले भटकते रहते हैं और कागजों में उनके आवास होने से अधिकारी भी शिकायत को गलत मानकर बंद कर देते हैं।
मूल्यांकन करने निर्देश दिए गए हैं
– ग्राम पंचायतों में जहां भी गड़बड़ी हुई है,उसको लेकर पूर्व में वसूली हुई है। कुछ सरपंचों पर एफआईआर भी दर्ज कराई गई थीं। गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए सचिव से लेकर जनपद सीईओ तक और मूल्यांकन करने वाले तकनीकी अधिकारियों को भी निर्देश दिए जा चुके हैं।
कौशलेन्द्र विक्रम सिंह, कलेक्टर