patrika.com पर पॉलीटिकल किस्सों की सीरिज में पेश है केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बारे में दिलचस्प किस्से…।
यह भी पढ़ेंः वो किस्सा: जब महाराजा सिंधिया अपने ही महल में बन गए थे किराएदार
हम बात कर रहे हैं एक किसान परिवार में जन्म नरेंद्र सिंह तोमर की, जो आज देश के कृषि मंत्री हैं। वे 64 साल के हो गए हैं। मुरैना जिले में पोरसा विकासखंड के ओरेठी गांव में मुंशी सिंह तोमर नामक किसान के पुत्र नरेंद्र सिंह तोमर का जन्म 12 जून 1957 को तोमर गुर्जर परिवार में हुआ था। देशभर के भाजपा नेता उनके जन्म दिवस पर शुभकामनाएं दे रहे हैं।
तोमर ही जिनके बारे में कहा जाता है कि तोल मोल के बोलते हैं और कभी विरोधियों को भी आहत नहीं करते हैं। तोमर के बारे में कहावतें हैं कि तोलकर जो बोले सो तोमर।
तोमर के परिवार में कोई भी राजनीति में नहीं रहा। लेकिन उनके देश में जब आपातकाल लगा था तो उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट वहीं था। वे जयप्रकाश नारायण के देशव्यापी आंदोलन में शामिल हो गए। पढ़ाई छूट गई, जेल तक जाना पड़ा। फिर उनका रुझान राजनीति में बड़ गया और उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सियासी सफर छात्र राजनीति से शुरू हो गया था। बताते हैं कि तोमर ने सबसे पहला चुनाव एसएलपी कॉलेज के अध्यक्ष के लिए लड़ा और जीत गए।
यह भी पढ़ेंः मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए सिंधिया
पहला मौका राजमाता ने दिया
उस समय डा. धर्मवीर सिंह ग्वालियर विधानसभा से विधायक थे। थाटीपुर भी ग्वालियर क्षेत्र में ही था। रानी महल में टिकट फाइल करने के लिए बैठकों का दौर जारी था। जंग बहादुर सिंह का नाम फाइनल होने वाला था। इस दौरान वे राजमाता विजयाराजे सिंधिया (अम्मा महाराज) से मिलने के लिए रानी महल पहुंच गए। धीर सिंह तोमर व जंग बहादुर सिंह के साथ नरेंद्र सिंह तोमर भी रानी महल पहुंच गए थे। अम्मा महाराज के सामने दोनों ने चुनाव लड़ने से असमर्थता जता दी। राजमाता के नरेंद्र सिंह तोमर के संबंध में पूछने पर सबने सहमति दे दी और उनके टिकट का फैसला हो गया। हालांकि नरेंद्र सिंह बाबू रघुवीर सिंह से 600 वोटों से चुनाव हार गए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीके साथ डेढ़ घंटे तक धाराप्रवाह भाषण देने के बाद वे भाजपा की राजनीति में चर्चाओं में आने लगे।