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15 साल कोर्ट में लड़ाई लड़ी तब 200 करोड़ की जमीन वापस ले पाया शासन, जानिए क्या है मामला

locationग्वालियरPublished: May 18, 2019 07:38:01 pm

Submitted by:

Rahul rai

सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को फिर से सुनवाई के लिए जिला न्यायालय को भेजा था, जहां शासन ने सत्रह साल बाद अपना पक्ष सही तरीके से रखा, इस कारण यह जमीन शासन को वापस मिल सकी।

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15 साल कोर्ट में लड़ाई लड़ी तब 200 करोड़ की जमीन वापस ले पाया शासन, जानिए क्या है मामला

ग्वालियर। प्रथम अतिरिक्त जिला न्यायालय ने सिटी सेंटर में एमपीसीटी कॉलेज के पास की करीब 28 बीघा जमीन के मामले में शासन द्वारा की गई अपील को स्वीकार कर 2004 में की गई डिक्री को खारिज कर दिया है। न्यायालय के इस आदेश के बाद 200 करोड़ से अधिक की जमीन 15 साल बाद शासन की हो गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को फिर से सुनवाई के लिए जिला न्यायालय को भेजा था, जहां शासन ने सत्रह साल बाद अपना पक्ष सही तरीके से रखा, इस कारण यह जमीन शासन को वापस मिल सकी।
व्यवहार न्यायालय ने 5 मार्च 2004 को शासन द्वारा अपना पक्ष सही तरीके से पेश नहीं किए जाने के कारण इस जमीन की संदेश सिंह तोमर व अन्य के नाम डिक्री कर दी थी। अधिकारियों ने इसके बाद फिर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया और अपील करने में 24 दिन का विलंब कर दिया। इस विलंब को अतिरिक्त जिला न्यायालय ने भी नहीं माना और शासन की अपील को खारिज कर दिया। दूसरी पराजय के बाद फिर उच्च न्यायालय में अपील की गई, यहां भी शासन हार गया। इसके बाद शासन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में गड़बड़ी पाते हुए शासन के विलंब को स्वीकार करते हुए इस मामले को दो साल पहले जिला न्यायालय में फिर से सुनवाई के लिए भेजा।
पटवारी ने बनवाई फाइल और उपलब्ध कराए दस्तावेज
इस मामले में शासन की ओर से पैरवी कर रहे शासकीय अधिवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव को प्रकरण की जानकारी मिली तो उन्होंने कार्यालय में फाइल देखी तो प्रकरण की फाइल गायब थी। उन्होंने पटवारी रामपाल सिंह जादौन को बुलवाया। पटवारी ने सभी संबंधित दस्तावेज जुटाकर मामले की फिर से फाइल तैयार कराई। वहीं शासन की ओर से जो दस्तावेज पेश किए जाने थे वे भी उपलब्ध कराए। जो पूर्व में उपलब्ध नहीं कराए जा रहे थे। ऐसे मामलों में दोषियों पर कार्रवाई नहीं होने से सिटी सेंटर में जमीनों के घोटालों के सबसे ज्यादा मामले चल रहे हैं।
शासन ने कोर्ट को बताया, फर्जी पट्टों के आधार पर ली डिक्री
शासन की ओर से न्यायालय को बताया गया कि ग्राम सिरोल की सर्वे क्रमांक 6 की 12 बीघा 18 बिस्वा, सर्वे क्रमांक 8/2 की 15 बीघा 19 बिस्वा जमीन शासन की एवं वन विभाग की है। वन विभाग की होने से इसे पट्टे पर नहीं दिया जा सकता था। इस प्रकार इस जमीन के फर्जी पट्टे तैयार कर डिक्री हासिल की गई। इस जमीन पर संदेश सिंह तोमर पुत्र विनोद सिंह तोमर, शिवेन्द्र और राम सिंह निवासी विवेक नगर ने दावा पेश किया था। उनका कहना था कि यह जमीन उनके बाबा लाल सिंह को दुर्गो ने पट्टे पर दी थी, जबकि शिवेन्द्र ने कहा कि उनके बाबा भीकम सिंह को मुन्नालाल द्वारा पट्टे पर जमीन दी गई थी। उनके बाबा के निधन के बाद से वे इस जमीन पर काबिज हैं। इस मामले में शासन ने अपना पक्ष मजबूती से नहीं रखा था, इस कारण शासन के खिलाफ डिक्री हो गई थी। अपील में शासकीय अधिवक्ता श्रीवास्तव का कहना था कि इस जमीन पर कुछ कर्मचारियों से मिलकर सरकारी दस्तावेजों में गलत एंट्रियां की गई थीं। इसके लिए जो पट्टे बनाए गए वे भी फर्जी थे। लिहाजा अतिरिक्त जिला न्यायालय ने शासन की अपील को स्वीकार करते हुए 2004 में की गई डिक्री को खारिज कर दिया।
ऐसा ही है यहां की 14 बीघा जमीन का मामला
जिला प्रशासन द्वारा सर्वे क्रमांक 50, 51 तथा 65/1 की 14 बीघा 15 बिस्वा जमीन जीडीए को कॉलोनी बनाने के लिए 10 अक्टूबर 2008 में दी गई। इस जमीन की भी फर्जी पट्टे के आधार पर 8 मार्च 2010 को डिक्री करा ली गई। इस मामले में जिला प्रशासन द्वारा फर्जी पट्टे तैयार कराने वाले राधेलाल आदिवासी के खिलाफ जुलाई 2018 में धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया गया था, लेकिन पुलिस ने उसे तब तक नहीं पकड़ा जब तक कि उसका मामला हाईकोर्ट में नहीं पहुंच गया। यह मामला अब उच्च न्यायालय में है, जिसमें उच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड तलब किया है। इसी क्षेत्र की विद्याविहार कॉलोनी का 314 बीघा का मामला भी अब उच्च न्यायालय में लंबित है।

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