एक हाथ से दिव्यांग भारत सिंह परिहार ने बताया कि मैंने ये काम अपनी दादी और मम्मी नवल किशोरी परिहार से सीखा था। अक्षय तृतीया के मौके पर पहले गुड्डे-गुडिय़ा की काफी बिक जाते थे, पर इस बार बिक्री पर संकट है। युवतियां अच्छा वर मिलने की उम्मीद से इनकी पूजा करती हैं। बच्चे भी इन्हें खेलने के लिए लेकर जाते हैं।
भारत सिंह ने बताया कि गुड्डे-गुडिय़ा की एक जोड़ी को बनाने में करीब तीन से चार दिन का समय लगता है। पुराने कपड़ों से सुंदर गुडिय़ा बनाई जाती है। वह घर में पुराने कपड़ों से अलग-अलग तरह की गुडिय़ा बनाकर इस कला को जिंदा रखे हुए हैं। गुडिय़ा के लिए पुराने सफेद सूती कपड़े को लाल, हरे, पीले रंगों में रंग कर उस पर रंगीन कागज से डिजाइन बनाया जाता है। पैर के लिए बांस की पतली लकड़ी और कपड़े को सिर का आकार देने के लिए लकड़ी का बुरादा इस्तेमाल किया जाता है।