एक रिपोर्ट के मुताबिक जिले में हर रोज डेढ़ से दो क्विंटल पॉलीथिन कचरे में फेंकी जा रही है। यह रिसाइकिल नहीं हो पाने से जानवरों की मौत का कारण बन रही है। छोटे दुकानदार से लेकर बड़े व्यापारी तक सामान के साथ पॉली बैग देते हैं। यह पॉलीथिन गायों के जीवन पर सीधा प्रभाव डालती है, क्योंकि लोग खाने-पीने का सामान इन पॉलीथिनों में भरकर कचरे के ठिया पर डाल आते हैं। भोजन की तलाश में भटकने वाली गाय इन्हें खा जाती हैं।
पॉलीथिन पर अध्ययन करने वाले स्टूडेंट्स के मुताबिक पॉलीथिन को गाय सीधे भोजन के साथ खा जाती हैं, ऐसा करने से धीरे-धीरे गायों की आंत में पॉलीथिन चिपक जाती है, जिससे उनके पेट में दर्द शुरू हो जाता है। ऐसी गायों की आंखों से आंसू आने लगते हैं और चेहरा फीका पड़ जाता है, गोबर में भी दुर्गंध आने लगती है। जब पॉलीथिन की मात्रा पेट के अंदर ज्यादा हो जाती है तो गायों का पाचन तंत्र खराब हो जाता है और कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो जाती है। एक गाय के पेट के अंदर दो से ढाई किलो तक पॉलीथिन पहुंच जाती है।
इससे सिर्फ गाय ही बीमार नहीं हो रही हैं, बल्कि नदियों और नालों के लिए भी यह बड़ी समस्या बनी हुई है। खेती में पॉलीथिन आने पर फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। इस ओर समाजसेवियों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसके खिलाफ शहर में मजबूती से अभियान नहीं चलाया जा सका है, इस वजह से यह चलन से बाहर नहीं हो पा रही है और हर साल गायों की मौत का कारण बन रही है, साथ ही इसके नष्ट नहीं होने से इससे सीवर भी चोक हो जाते हैं, जिससे प्रदूषण भी बढ़ रहा है।