स्लेक कार्यक्रम (सस्टेनेबल लाईवलीहुड एडोप्शन टू क्लाईमेट चेंज) के तहत राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के विशेषज्ञों की सलाह पर जिले के 40 गांवों के 95 किसानों ने केले की खेती करने का ये नवाचार शुरू किया है। जिसमें प्रत्येक किसान ने परंपरागत खेती के साथ ही खेत के एक बीघा के क्षेत्र में केले के पौधे लगाए हैं। इसमें पुरुष किसानों के साथ ही कई गांव में महिला किसानों ने भी इस केले की खेती को अपनाया है। एनआरएलएम ने किसानों को पौधे उपलब्ध कराए हैं। खेती में किसानों ने छह बाई छह फीट के अंतराल पर एक-एक पौधा लगाते हुए एक बीघा में कुल 324 पौधे लगाए हैं। उत्तम क्वालिटी जी-9 किस्म के केले के पौधे गत जुलाई-अगस्त में लगाए गए, जो अब धीरे-धीरे आकार ले रहे हैं।
विशेष बात यह है कि एक बार पौधा लगाने के बाद कई सालों तक किसान केले का उत्पादन ले सकेंगे। विशेषज्ञों के मुताबिक केले की खेती में ज्यादा लागत और ज्यादा मेहनत नहीं है, बल्कि ये बारिश के पानी में हो जाते हैं। अपनी परंपरागत खेती के साथ ही इस एक बीघा की केले की खेती से किसान एक लाख रुपए की अतिरिक्त आय पा सकेंगे।
खाली जगह में अन्य फसल, दोगुना लाभ
ए क बीघा के रकबे में छह बाई छह फीट के अंतराल पर केले के 324 पौधे लगाए जाने के बाद अब बीच में खाली पड़ी भूमि पर किसान अन्य फसलें कर रहे हैं। जिसमें मटर, पत्तागोभी या अन्य सब्जियों की फसल किसान लगा रहे हैं। यही वजह है कि इस नवाचार में एक बीघा के खेत में केले की खेती के साथ किसान अन्य नकदी फसलें कर सकेंगे, जिससे दोगुना लाभ होगा।
पहली बार होगी केले की खेती
अभी तक श्योपुर में केले की खेती नहीं होती है, लेकिन पहली बार 40 गांवों के 95 किसानों ने इसे शुरू किया है। श्योपुर का वातावरण भी इसके लिए उपयुक्त है। इससे किसानों को परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त आय होगी।
डॉ.सोहनकृष्ण मु़दगल, कृषि विशेषज्ञ, जिला पंचायत श्योपुर