शहर से संचालित होने वाली बसों की सघन चेकिंग की जाए तो 60 फीसदी का रजिस्ट्रेशन निरस्त हो सकता है। परिवहन विभाग से मिलीभगत कर बस ऑपरेटर्स बसों में दो सीटों के बीच का गैप कम कर सीटें बढ़ा रहे हैं, जबकि बस का रजिस्ट्रेशन व्हीलवेज (बस निर्माता कंपनी द्वारा निर्धारित की गई सवारी की क्षमता) के आधार पर ही किया जाता है।
बस ऑपरेटर्स द्वारा टैक्स चोरी करने व सवारी की सुविधा छीनने को लेकर परिवहन विभाग के अधिकारी भी दबी जुबान से बोल रहे हैं। 50 सीटर बस में 55 सवारी बैठाई जा रही हैं। दो साइड में एक-एक सीट बढ़ा दी जाती है, जिससे सीटों के बीच का गेप कम हो जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक बसों की सीटों के बीच का स्टैंडर्ड गैप 6 इंच होता है। बस ऑपरेटर्स इसे कम कराकर 4 इंच तक कर देते हैं। इस तरह हर सीट के बीच गैप कम कर दोनों ओर सीटें बढ़ा लेते हैं।
रजिस्ट्रेशन हो सकता है निरस्त
बस ऑपरेटर्स अपने फायदे के मुताबिक बसों की बॉडी बनवाते हैं और सीटें बढ़वाते हैं, फिर परिवहन विभाग पर दबाव बनाकर रजिस्टे्रशन करा लेते हैं। रजिस्ट्रेशन के समय बसों की फिटनेस की जांच नहीं हो रही है। न ही फील्ड का अमला दफ्तर से बाहर निकल रहा है, जबकि महाराष्ट्र और कर्नाटक में सघन चेकिंग की जाती है।
बस ऑपरेटर्स अपने फायदे के मुताबिक बसों की बॉडी बनवाते हैं और सीटें बढ़वाते हैं, फिर परिवहन विभाग पर दबाव बनाकर रजिस्टे्रशन करा लेते हैं। रजिस्ट्रेशन के समय बसों की फिटनेस की जांच नहीं हो रही है। न ही फील्ड का अमला दफ्तर से बाहर निकल रहा है, जबकि महाराष्ट्र और कर्नाटक में सघन चेकिंग की जाती है।
स्टैंडर्ड पैरामीटर के मुताबिक बसों में गैंग-वे की निश्चित दूरी होना चाहिए। सीटों का गैप कम होने से यात्रियों को परेशानी होती है। बस ऑपरेटर्स सीटें बढ़ाकर टैक्स चोरी करते हैं। इस तरह बसों का रजिस्ट्रेशन निरस्त होना चाहिए।
अशोक निगम, पूर्व उप परिवहन आयुक्त
यदि सीटों के बीच गैप कम है तो जांच कराएंगे, ऐसी बसों का फिटनेस निरस्त कराई जाएगी।
एसपीएस चौहान, आरटीओ