घडिय़ालों की संख्या और बढ़ सकती
फरवरी में होने वाली जलीय जीव गणना में इनकी संख्या और बढ़ सकती है। क्योंकि बीते एक साल में 100 के करीब घडिय़ाल तो देवरी संरक्षण केंद्र में ही तैयार करके चंबल में छोड़े जा चुके हैं। 30 जनवरी व 6 फरवरी 2019 को 2 बार में 85 घडिय़ाल शावक चंबल नदी में छोड़े गए थे। बिहार की गंडक नदी में घडिय़ालोंं की संख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है। यहां 251 घडिय़ाल पाए गए हैं।
घडिय़ाल हर साल मार्च-अप्रैल में चंबल कि किनारे रेत में अंडे देते हैं। इन अंडों को संकलित कर देवरी घडिय़ाल केंद्र लाया जाता है। यहां जो बच्चे निकलते हैं उन्हें 1.20 मीटर की लंबाई होने तक करीब 3 साल तक पाला जाता है। इस दौरान के उनके पोषण का पूरा ध्यान रखा जाता है। 1.20 मीटर की लंबाई होने के बाद यह माना जाता है कि घडिय़ाल शावक अब चंबल में अपना भरण-पोषण कर सकते हैं।
चंबल नदी श्रेष्ठ
बहते साफ पानी में पनपने वाले घडिय़ालों के लिए चंबल सबसे श्रेष्ठ नदी है। यहां 100 के करीब डाल्फिन और 500 के करीब मगरमच्छ हैं। घडिय़ाल और मगर मोटर बोटिंग के दौरान और राजघाट के आसपास अक्सर देखे जाते हैं। उत्तरप्रदेश में गिरवा, उत्तराखंड में रामगंगा, नेपाल में नारायणी राप्ती नदी में भी घडिय़ालों के लिए अनुकूल माहौल है।
रेत खनन से खतरा
चंबल सेंचुरी मप्र के तीन जिलों मुरैना, भिण्ड और श्योपुर जिले में 435 किलो तक फैली है। उत्तरप्रदेश के इटावा, आगरा और राजस्थान के धौलपुर, करौली जिले इससे लगते हैं। मुरैना, भिण्ड और श्योपुर जिले के सभी प्रमुख घाटों पर रेत के अवैध उत्खनन से जलीय जीवों को खतरा है, इसके बावजूद घडिय़ालों की संख्या बढऩा सुखद है।
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट की कुछ दिन पहले आई रिपोर्ट में जलीय जीव घडिय़ालों की संख्या में विश्व में सर्वाधिक चंबल मे पाई गई है। यह गौरव की बात है। बहते हुए स्वच्छ और शुद्ध पानी की वजह से यहां घडिय़ाल आसानी से पनपते हैं।
– पीडी गेब्रियल, डीएफओ, मुरैना