चंद्रशेखर आजाद खनियांधाना पहुंचने की भी एक कहानी है। खनियांधाना के राजा खलक सिंह अपना वाहन सुधरवाने के लिए झांसी जाते थे। एक बार जब राजा अपना वाहन सुधरवाने के बाद वहां से वापस लौट रहे थे, तो अंंधेरा होने लगा था, तो झांसी के मिस्त्री ने चंद्रशेखर आजाद को राजा के साथ यह कहते हुए भेज दिया कि वाहन कहीं रास्ते में धोखा न दे जाए। महाराज खलक सिंह के साथ चंद्रशेखर वाहन में सवार होकर आ रहे थे तो रास्ते में एक जगह बाथरूम करने के लिए रुके तो वहां एक सांप महाराज की तरफ बढ़ा, जिसे चंद्रशेखर ने देख लिया और बिना देर किए गोली चलाकर उसे मार दिया।
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चंद्रशेखर का निशाना देखकर खलक सिंह को शक हुआ तो उन्होंने रास्ते में उनसे पूछा कि तुम मिस्त्री तो नहीं हो। तब चंद्रशेखर ने बताया कि मैं देश की आजादी के लिए लड़ रहा हूं। उनकी बात से प्रभावित होकर राजा खलक सिंह ने चंद्रशेखर आजाद को पहले गोविंद बिहारी मंदिर का पुजारी बनाया और फिर सीतापाठा मंदिर पर रहते हुए चंद्रशेखर ने हथियार चलाना व हथगोला बनाना सीखा। चंद्रशेखर आजाद लगभग सात माह तक खनियांधाना में रहे तथा उनके पास जो पिस्टल थी, वो भी खनियांधाना के राजा खलक सिंह द्वारा ही दी गई थी।
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