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जयारोग्य अस्पताल से रोजाना निकलने वाले ढाई लाख लीटर लिक्विड वेस्ट के शोधन की व्यवस्था न होने से इसे सीवर के जरिए नाले में बहाया जा रहा है

अनूप भार्गव @ ग्वालियर
जयारोग्य अस्पताल से रोजाना निकलने वाले ढाई लाख लीटर लिक्विड वेस्ट के शोधन की व्यवस्था न होने से इसे सीवर के जरिए नाले में बहाया जा रहा है। अस्पताल में लिक्विड वेस्ट को रोकने एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं है जबकि ईटीपी को केंद्र सरकार ने सख्त गाइडलाइन बनाई है। जेएएच में ईटीपी लगाने का 2012 में एक्शन प्लान बनाया गया था। इसके लिए शासन से २ करोड़ रुपए का बजट मांगा था, लेकिन अब तक फाइल चिकित्सा शिक्षा विभाग से मंजूर नहीं हो सकी है।
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जेएएच : 02 करोड़ प्लांट के बजट की फाइल 2012 से चिकित्सा शिक्षा विभाग में अटकी
पलंग संख्या 1350, ऑपरेशन थियेटर 09, पैथोलॉजी 03
प्रतिदिन निकलता दूषित पानी: 2 लाख 50 हजार लीटर
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नियम के मुताबिक 100 बिस्तर से ज्यादा संख्या वाले अस्पतालों में ईटीपी लगाना जरूरी है जबकि जयारोग्य अस्पताल में 1350 बिस्तर संख्या है। जेएएच में 9 ऑपरेशन थियेटर, पैथोलॉजी, लेबर रूम सहित वार्डों से प्रतिदिन दूषित पानी निकलता है। इसके बावजूद इसके शोधन की कोई व्यवस्था नहीं किए जाने से यह भूजल को प्रदूषित करने के साथ बीमारियों का खतरा बढ़ा रहा है।
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दिए हैं निर्देश
जेएएच अस्पताल प्रबंधन को ईटीपी प्लांट लगाने के निर्देश दिए हैं। अस्पताल प्रबंधन ने बताया है कि उन्होंने प्लान तैयार कर मंजूरी के लिए भेजा है।
एनपी सिंह, क्षेत्रीय अधिकारी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
प्लांट में होना चाहिए शोधन
अस्पतालों से मवाद, खून, कैमिकल्स, किसी भी सर्जरी से निकलने वाली तरल गंदगी व अन्य संक्रमित तरल पदार्थ निकलते हैं। इस लिक्विड वेस्ट को एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाकर ट्रीट किया जाता है। ट्रीटमेंट से संक्रमण नष्ट होता है। प्रदूषित वेस्ट शुद्ध होता है, जो पौधों या बगीचों में पानी देने के काम में लिया जा सकता है।
इंतजाम करना अनिवार्य
केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के 2016 के नियमों में अस्पताल और लिक्विड वेस्ट के निष्पादन का इंतजाम करना अनिवार्य किया गया है। मध्यप्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने अस्पताल प्रबंधन को ईटीपी लगाने के लिए सख्ती निर्देश दिए हैं। इतना ही नहीं प्रदूषण विभाग कार्रवाई का नोटिस भी जीआरएमसी प्रबंधन को दे चुका है।
बीमारी का खतरा
अस्पताल से निकलने वाला लिक्विड कैमिकल संक्रमित होता है। जो सीवेज लाइन के जरिए नालों पहुंचता है। ये संक्रमित लिक्विड भूजल को भी प्रदूषित करता है। जिसके कारण पेट, चमड़ी और कैंसर जैसी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।
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