घरों से कचरा कलेक्शन के लिए जो टिपर जाते हैं, उसमें दो लोगों का स्टाफ रहता है। चालक के साथ एक हेल्पर रहता है। हेल्पर को कचरा डालने में लोगों की मदद करना है, अगर कोई कचरा जमीन पर या यहां वहां पड़ा है तो उसे उठाकर गाड़ी में डालना होता है, लेकिन हेल्पर गाड़ी में ही बैठा रहता है। इसको लेकर कई बार लोगों ने शिकायत की, यहां तक कि पार्षदों ने भी इसे पर परिषद में हंगामा किया, इसके बावजूद हालात नहीं बदले।
कंपनी घरों से कचरा कलेक्शन में अब रुचि नहीं ले रही है। दरअसल, कंपनी को पॉवर जनरेशन की अनुमति शासन से नहीं मिली है। शुरुआत में शासन ने कंपनी से कचरे से पॉवर जनरेशन कर प्रति यूनिट 6.33 रुपए में खरीदने की बात कही थी, लेकिन अब शासन इसे मान नहीं रहा है। इसलिए कंपनी द्वारा आगे इनवेस्ट नहीं किया जा रहा है। कंपनी ने शासन को दो ऑफर दिए हैं, जिसके तहत या तो बिजली उत्पादन की अनुमति देकर उसे उसी रेट में खरीदा जाए या फिर कचरा कलेक्शन के प्रतिशत के अनुसार उसका पेमेंट किया जाए। अब शासन को इस पर निर्णय लेना है। कंपनी ने इनमें से ही किसी एक पर आगे काम करने की बात कही है।
शासन स्तर पर कंपनी को पॉवर जनरेशन की अनुमति और तय रेट पर बिजली खरीदने को लेकर निर्णय होना है। अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है, जैसे ही निर्णय होगा तय हो जाएगा कि कंपनी काम करेगी या नहीं।
संदीप माकिन, निगमायुक्त