राजस्व प्रकरणों की सुनवाई बंद
डबरा, भितरवार, घाटीगांव, मुरार, लश्कर, ग्वालियर, झांसी रोड, मुरार शहर के एसडीएम कार्यालयों में 25 मई के बाद से एक भी बड़ा ऑर्डर नहीं हुआ है। इन सभी कार्यालयों में सिर्फ निर्वाचन संबंधी काम किया जा रहा है। नामांकन, बंटवारा, बटांकन, सीमांकन, विवादित प्रकरण की सुनवाई भी बंद है। जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन आदि का काम भी अटका है। प्रशासन ने आम जन की सहूलियत के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं की है।
डबरा, भितरवार, घाटीगांव, मुरार, लश्कर, ग्वालियर, झांसी रोड, मुरार शहर के एसडीएम कार्यालयों में 25 मई के बाद से एक भी बड़ा ऑर्डर नहीं हुआ है। इन सभी कार्यालयों में सिर्फ निर्वाचन संबंधी काम किया जा रहा है। नामांकन, बंटवारा, बटांकन, सीमांकन, विवादित प्रकरण की सुनवाई भी बंद है। जाति प्रमाणपत्र के सत्यापन आदि का काम भी अटका है। प्रशासन ने आम जन की सहूलियत के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं की है।
धारणाधिकार की जांच भी अटकी
शासकीय भूमि पर निवास कर रहे लोगों को पट्टा देकर भू स्वामी बनाने के लिए शुरू की गई योजना का काम भी बीते महीने से बंद है। धारणाधिकार के अंतर्गत लिए गए इन सभी आवेदनों को दर्ज तो किया गया लेकिन एसडीएम कार्यालयों में जांच नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि वर्तमान में दर्ज 20 हजार से अधिक आवेदनों में से 17 हजार जांच के लिए एसडीएम कार्यालयों में भेजे गए थे। 12 हजार 500 आवेदनों की अभी तक जांच पैंङ्क्षडग है।
शासकीय भूमि पर निवास कर रहे लोगों को पट्टा देकर भू स्वामी बनाने के लिए शुरू की गई योजना का काम भी बीते महीने से बंद है। धारणाधिकार के अंतर्गत लिए गए इन सभी आवेदनों को दर्ज तो किया गया लेकिन एसडीएम कार्यालयों में जांच नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि वर्तमान में दर्ज 20 हजार से अधिक आवेदनों में से 17 हजार जांच के लिए एसडीएम कार्यालयों में भेजे गए थे। 12 हजार 500 आवेदनों की अभी तक जांच पैंङ्क्षडग है।
शिकायत दर्ज कराने लगाने पड़ रहे चक्कर
लोगों को आवेदन देने के लिए मुख्य गेट पर स्थापित ङ्क्षवडो से लेकर कमरों में घुमाया जा रहा है।
सही जगह बताने की बजाय कर्मचारी एक कमरे से दूसरे कमरे में भेजते रहते हैं।
शिकायती आवेदन देने के लिए कक्ष-111 में पहुंचने पर बाबुओं द्वारा कार्यालय अधीक्षक से हस्ताक्षर कराने के लिए भेज दिया जाता है।
ओएस अगर न मिल सके तो फिर बाबू शिकायती आवेदन लेने से मना कर देते हैं।
लोगों को आवेदन देने के लिए मुख्य गेट पर स्थापित ङ्क्षवडो से लेकर कमरों में घुमाया जा रहा है।
सही जगह बताने की बजाय कर्मचारी एक कमरे से दूसरे कमरे में भेजते रहते हैं।
शिकायती आवेदन देने के लिए कक्ष-111 में पहुंचने पर बाबुओं द्वारा कार्यालय अधीक्षक से हस्ताक्षर कराने के लिए भेज दिया जाता है।
ओएस अगर न मिल सके तो फिर बाबू शिकायती आवेदन लेने से मना कर देते हैं।
यह भी होती है परेशानी
भूल से अगर कोई कक्ष-111 की बजाय कलेक्टर स्टेनो कक्ष या फिर किसी एसडीएम के स्टेनो कक्ष में पहुंच जाए तो कर्मचारी ढंग से बात तक नहीं करते। आवेदक को जगह बताने की बजाय सीधे आवक शाखा में जाने के लिए कहा जा रहा है। कलेक्ट्रेट के सभी कक्षों से अनजान लोग आवक शाखा ढूंढते रहते हंै। इस मेहनत में आवेदकों का एक से डेढ़ घंटे का समय अतिरिक्त लगता है।
भूल से अगर कोई कक्ष-111 की बजाय कलेक्टर स्टेनो कक्ष या फिर किसी एसडीएम के स्टेनो कक्ष में पहुंच जाए तो कर्मचारी ढंग से बात तक नहीं करते। आवेदक को जगह बताने की बजाय सीधे आवक शाखा में जाने के लिए कहा जा रहा है। कलेक्ट्रेट के सभी कक्षों से अनजान लोग आवक शाखा ढूंढते रहते हंै। इस मेहनत में आवेदकों का एक से डेढ़ घंटे का समय अतिरिक्त लगता है।
इनका कहना है
सामान्य आवेदनों के निराकरण को लेकर हमने पूरी व्यवस्था की है। शिकायती आवेदन आदि लेने के लिए भी कर्मियों को जिम्मेदारी दी है। मैं स्वयं भी हर दिन लोगों की शिकायतें सुनता हूं। अगर निचले स्तर पर कोई लापरवाही हो रही है तो हम आकस्मिक तरीके से इसकी जांच कराएंगे।
कौशलेन्द्र विक्रम ङ्क्षसह, कलेक्टर