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एक चुनावी किस्सा: जब एक सामान्य पार्षद से प्रधानमंत्री के भतीजे को करना पड़ा हार का सामना

locationग्वालियरPublished: Jun 26, 2022 05:27:38 pm

A popular political story of MP- प्रधानमंत्री और विधायक जैसे रिश्तेदारों के होते भी देखना पड़ निगम परिषद चुनाव में हार का चेहरा- निगम परिषद में कांग्रेस के थे 29 ही पार्षद, लेकिन वोटिंग में मिले 36 वोट

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ग्वालियर। ग्वालियर निगम परिषद के सन 1999 में हुए चुनाव कुछ अप्रत्याशित नतीजों के लिए अब तक याद किए जाते हैं। कुछ ऐसा ही नतीजा था देश के तब के प्रधानमंत्री के भतीजे की पराजय।

दरअसल भाजपा ने ग्वालियर दक्षिण के वार्ड 55 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के भतीजे दीपक वाजपेयी को अपना प्रत्याशी बनाया था। दीपक वाजपेयी को चुनाव जिताने के लिए भाजपा की स्थानीय इकाई ने पूरी ताकत लगा दी थी। लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी आनंद शर्मा ने उन्हें चुनाव में हरा दिया। प्रधानमंत्री के भतीजे की पराजय देशभर के अखबारों की सुर्खियां बनी और इधर ग्वालियर में छात्र राजनीति से कांग्रेस में आए आनंद शर्मा एकदम से कांग्रेस के स्थानीय स्तर पर अग्रणी पंक्ति के नेता बन गए।

वहीं, कांग्रेस के प्रत्याशी आनंद शर्मा का यह दूसरा चुनाव था। वे पहले भी 1994 के निगम चुनाव में इसी वार्ड से पार्षद चुने गए थे, जबकि दीपक वाजपेयी का यह पहला चुनाव था, जिसमें उन्हें पराजय मिली।

तत्कालीन प्रधानमंत्री के भांजे अनूप मिश्रा पहले ही 1990 के विधानसभा चुनाव में गिर्द से विधायक चुने जा चुके थे और 1999 के निगम चुनाव में दीपक वाजपेयी को परिषद में पहुंचाकर नगर सरकार की राजनीति में प्रतिष्ठित करने का प्रयास था, जो सफल नहीं हुआ।

उधर आनंद शर्मा को पार्टी में वजन देते हुए जिला कांग्रेस में उपाध्यक्ष, महामंत्री और मीडिया प्रभारी जैसे पद मिले।

प्रदेश की राजधानी पर प्रशासनिक कामकाज का दबाव कम करने के उद्देश्य से तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने जब जिला सरकारों की स्थापना की तो ग्वालियर में हुए जिला सरकार के चुनाव में आनंद शर्मा नगरीय विकास समिति के चेयरमैन चुने गए।

खास बात यह रही कि परिषद में कांग्रेस के 29 ही पार्षद थे, लेकिन भाजपा में क्रास वोटिंग हुई और आनंद शर्मा को 36 वोट मिले। नगरीय विकास समिति के चेयरमैन के रूप में शर्मा ने उपनगर ग्वालियर के हजीरा चौराहे पर मजदूर नेता दिवंगत रामचंद्र सर्वटे की प्रतिमा स्थापित कर इस चौराहे के सौंदर्यीकरण जैसे कई बड़े काम किए। साल 2004 में वार्ड 55 ओबीसी महिला आरक्षित हो गया। आनंद ने यह चुनाव पड़ोसी वार्ड 51 से लड़ा यह वार्ड परिवर्तन उनके लिए चुनावी दृष्टि से महंगा साबित हुआ और वे पराजित हो गए। इसके बाद साल 2009 में आनंद शर्मा ने वार्ड 48 से चुनाव लड़ा और वह एक बार फिर से निगम परिषद में जीतकर पहुंचे।

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