शहर में हर रोज चने की 20 क्विंटल से अधिक की खपत है। बताया जाता है कि सबसे अधिक मंदिरों में भगवान को लगने वाले भोग के लिए इलायची दाने के साथ बिकते हैं। ठेलों के साथ किराना दुकानों पर भी चने की बिक्री होती है। कई लोग सब्जी की ग्रेवी में भी चनों का उपयोग करते हैं। बाजार में बिकने वाले ये हानिकारक चने 80 से 100 रुपए प्रति किलो बेचे जा रहे हैं। रंगे हुए चने खाने पर इनमें कुछ कड़वाहट महसूस होती है।
करीब 20 से 25 मिनट तक भाड़ (भट्टी) में भूंजा जाता है। भूंजने के बाद उन्हें केमिकल और हानिकारक रंग से रंगा जाता है, इससे उन पर पीले रंग की चमक आ जाती है।
गर्मी के दिनों में सत्तू घोलकर पीने से राहत मिलती है। सत्तू चने, गेहूं और जौ मिलाकर तैयार किया जाता है। सत्तू भी इन तीनों से न बनाते हुए केवल और जौ और गेहूं को मिलाकर बनाया जा रहा है। इसमें भी पीलापन लाने के लिए पीले रंग का इस्तेमाल किया जा रहा है।
ये स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक हो सकते हैं। ये रासायनिक फूड की श्रेणी में आएंगे। इनके जरिए रसायन छोटी और बड़ी आंत के जरिए खून में पहुंच जाता है और छोटी आंत-बड़ी आंत के साथ दूसरे अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ब्लड के जरिए लीवर और किडनी को भी धीरे-धीरे प्रभावित कर सकते हैं। इस तरह के केमिकल रंगों से कैंसर की संभावना भी बढ़ जाती है।
– डॉ.अजय पाल, प्राध्यापक, मेडिसिन विभाग, जेएएच