माधव प्लाजा की 130 दुकानें आज भी खाली पड़ी हैं। इन्हें लेने के लिए किसी भी व्यापारी ने रुचि नहीं दिखाई है। जीडीए ने इसके लिए कई बार विज्ञापन निकाला, लेकिन कोई भी इन दुकानों को किराए पर लेने को तैयार नहीं हुआ है। यह दुकानें बंद पड़ी हैं।
माधव प्लाजा के थर्ड फ्लोर पर काफी समय से रजिस्ट्रार कार्यालय चल रहा था, इससे यहां कुछ रौनक रहती थी। यहां आने वाले लोगों के लिए एस्केलेटर व एसी चलते थे, जिससे बिजली बिल काफी ज्यादा आता था, लेकिन कुछ माह पूर्व रजिस्ट्रार कार्यालय भी यहां से चला गया। अब यह पूरा कैम्पस खाली सा ही है। जिन लोगों ने यहां पर दुकानें ली हैं, वह आते-जाते हैं, जिसके चलते लिफ्ट व एसी चलाने पड़ते हैं।
माधव प्लाजा में जीडीए हर माह लगभग पांच लाख रुपए खर्च कर रहा है। लगभग डेढ़ से दो लाख रुपए बिजली का बिल आता है। छह-छह गार्ड तीन शिफ्ट में काम करते हैं। सफाई के लिए छह से ज्यादा कर्मचारी तैनात हैं। बिजली के काम देखने वाले कर्मचारी और जीडीए ने खुद का ट्रांसफार्मर लगाया है, उस पर भी तीन कर्मचारी तैनात रहते हैं। सभी खर्च मिलाकर जीडीए को लगभग पांच लाख रुपए देने पड़ते हैं।
माधव प्लाजा में जब दुकानें बिकीं नहीं तो जीडीए ने किराए पर देना शुरू किया, जिसमें सबसे कम किराया 5 हजार रुपए और अधिकतम 75 हजार रुपए तक है, यह दुकानें खाली पड़ी हैं।
जीडीए ने माधव प्लाजा में लोगों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए दो एस्केलेटर और लिफ्ट लगवाई हैं। पूरा प्लाजा वातानुकूलित है। इसमें कोई दुकान देखने भी ऊपरी मंजिल पर जाता है तो लिफ्ट और एस्केलेटर का ही सहारा लेता है।
जीडीए ने माधव प्लाजा में 33 केबी का ट्रांसफार्मर लिया है। इसका निश्चित बिल बिजली कंपनी को हर महीने में जमा करना ही पड़ता है। अधिकांश दुकानें बंद होने से बिजली कंपनी को पूरा पैसा जीडीए को ही अपनी जेब से जमा करना पड़ रहा है।
जीडीए के लिए माधव प्लाजा काफी महंगा साबित हो रहा है। दुकानदार अपनी दुकानें नहीं खोल रहे हैं, जिससे बिजली सहित कई खर्चे हमें ही देने पड़ रहे हैं।
सुभाष सक्सेना, प्रभारी कार्यपालन यंत्री, जीडीए