सरला सुनेजा बताती हैं कि उन्हें जब इस कला के बारे में मालूम चला, तो वह सिंध समाज की बुजुर्ग महिलाओं से मिलीं और इस कला के बारे में जाना। फिर इस पर काम शुरू किया। इस कला को जीवित रखने के लिए उन्होंने हजारों महिलाओं को ट्रेनिंग दी। आज यह कला एक बार फिरसे जीवित हो चुकी है। इसका यूज साड़ी, सूट में किया जा रहा है।
दिव्यांग बच्चों ने बनाई राखियां एग्जीबिशन में रामकृष्ण आश्रम के दिव्यांग बच्चों के प्रोडक्ट को भी शामिल किया गया है। बच्चों ने बड़ी मेहनत से कागज के बैग, राखी एवं डेकोरेटिव आयटम्स तैयार किए हैं, जिनकी काफी डिमांड रही। एग्जीबिशन के पहले दिन काफी संख्या में लोग खरीदारी के लिए पहुंचे।
लेडीज पर्स कर रहे अट्रैक्ट इस एग्जीबिशन में सभी हैंडमेड आयटम्स हैं, जिसमें एम्ब्रायडरी, साड़ी, सूट, आर्टिफिशियल ज्वैलरी, जूट आयटम्स, लेडीज पर्स, पीतल का समान आदि शामिल किए गए हैं। यह एग्जीबिशन सावन थीम पर आयोजित है, जिसमें सावन से जुड़े आयटम्स भी शामिल किए गए हैं।