अगर किसान अपने खेत की जरूरत को ध्यान में रखकर उसकी देखभाल करता है तो उसे भरपूर उत्पादन मिल सकता है। वर्तमान समय में आपके खेत की मिट्टी का परीक्षण होता है जिसकी रिपोर्ट में मिट्टी में पाए जाने वाले सभी तत्व किस अनुपात में मौजूद है किस तत्व की कमी है यह पता चल जाता है। फिर किसान खेत की जरूरतों को पूरा करके उसकी मिट्टी के अनुसार फसल या फलोत्पादन करता है तो खेती को लाभ का धंधा बनाया जा सकता है।
परम्परागत खेती से आगे आकर जिले के किसान खेत की मिट्टी की तासीर के अनुसार फसलों की बोवनी करना चाहिए। विकासखंड कृषि अधिकारी किसानों से मिट्टी के नमूने लेकर मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में लाते हैं। जहां उसका परीक्षण कर रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाता है। किसान स्वयं भी इन प्रयोगशाला में जाकर अपना नमूना दे सकता है।
प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के साथ ही कृषि विज्ञान केंद्रों में भी मृदा परीक्षण किया जाता है। सरकार ने किसानों के स्वाइल हेल्थ कार्ड बनवाए हैं। इनके जरिए खेतों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का समुचित प्रबंधन किया जाता है। वही उर्वरकों की आवश्यकतानुसार मिट्टी में मिलाने से विषाक्तता कम होती है।
मृदा परीक्षण लैब में मृदा का पीएच, ईसी, ऑर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्व सल्फर, कॉपर, मैगनीज, आयरन एवं ङ्क्षजक की उपलब्ध मात्रा की जांच की जाती है। जांच के बाद किसान को इसकी जानकारी दी जाती है। पोषक तत्वों की उपलब्धता के आधार पर फसल विशेष के लिए रासायनिक खाद, रसायन और जैविक खाद की संयुक्त मात्रा के उपयोग की सलाह दी जाती है।
मिट्टी की जांच से फसल के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों का निर्धांरण होता है। मृदा परीक्षण से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम की उपलब्धता आवश्यतानुसार उर्वरकों के उपयोग की जानकारी मिलती है। मृदा परीक्षण से खेत की मिट्टी की स्थिति तय हो जाती है। यह भी पता चलता है कि भूमि सुधार के लिए कितनी मात्रा में किस तरह के उर्वरक का उपयोग किया जाए, जिससे उत्पादन अच्छा हो। रसायनों का अनावश्यक उपयोग भी नहीं हो।