मेरी तपस्या है बेटी, हमारे हर घाव पर मरहम लगा रही शिराली
पत्नी डॉ. सुधा रुनवाल को 2001 में किडनी प्रॉब्लम हुई। 2012 तक उनका ट्रीटमेंट चलता रहा। फिर तबियत बिगडऩे लगीं। उस समय शिराली 12वीं क्लास में थी। उसके मेडिकल में एडमिशन लेने के साथ ही सुधा ने बिस्तर पकड़ लिया। तब मैं बिल्कुल अकेला पड़ गया। सुधा को डॉक्टर को दिखाने जाने से लेकर घर के सारे काम मेरे जिम्मे थे। शिराली को मैं पढ़ाई से डिस्टर्ब नहीं कर सकता था। 2017 में मैंने सुधा को जयपुर भाई के यहां शिफ्ट किया। क्योंकि वहां उसका इलाज चल रहा था। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद से वही हैं। इस बीच मैंने शिराली को मां और पिता दोनों का प्यार दिया। मैं सुबह 4 बजे उठकर घर के काम निपटाता, नाश्ता बनाता, फिर खुद के क्लीनिक जाता। दोपहर 2 बजे क्लीनिक से घर आकर खाना बनाता, फिर क्लीनिक जाता और शाम को लंच के लिए तैयारी करता। इस बीच मुझे शिराली को मेडिकल कॉलेज छोडऩा और ले जाना भी पड़ता। संघर्ष कड़ा जरूर है, लेकिन सफलता उससे बड़ी मैंने पाई है। सुधा अब काफी हद तक ठीक है। शिराली एमएस गायनिक कर रही है। उल्लेखनीय है कि शिराली ने नीट में टॉप किया है और एमबीबीएस के दौरान 37 गोल्ड मेडल अपने नाम किए है।
डॉ. अरविंद रुनवाल, चाइल्ड स्पेशलिस्ट
बच्चों के भविष्य का ध्यान रख नहीं की शादी, आज दोनों शेटल्ड
पत्नी प्रतिभा 2012 में छोड़कर चली गई। उसे ब्रेन ट्यूमर था। ढाई साल तक उसने संघर्ष किया और उसके जाने के बाद मैंने। उस दुख से मैं उबर नहीं पाया था, लेकिन मेरे सामने तुषार और चितवन का भविष्य था। उनके लिए मेरा मजबूत रहना जरूरी था। उस समय बेटा तुषार 11वीं क्लास में था और बेटी बीई फाइनल ईयर में थी। मैंने उनकी पढ़ाई रुकने नहीं दी। आज तुषार हिमाचल प्रदेश की एक कम्पनी और बेटी नोएडा में जॉब कर रही है। दोनों बहुत अच्छे पैकेज पर हैं। पत्नी के जाने के बाद मेरे ऊपर शादी करने का बहुत प्रेशर आया, लेकिन मैंने हां नहीं की। क्योंकि यदि मैं हां कर देता, तो शायद बच्चों का यह भविष्य यह नहीं होता। बच्चों के पढ़ाई के दौरान कई परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, लेकिन हौसले से मैंने एक अच्छे पिता होने का फर्ज निभाया।
प्रदीप शर्मा, बिजनेसमैन