ग्वालियर सनातन काल से पलाश के फूलो का अपना अलग ही महत्व है पुराने समय मे जब सिन्थेटिक कलर नही होते थे तब इन फूलो को पीसकर रंग बनाये जाते थे पलाश के फूल होली के त्योहार आते ही खिल उठते है और अपने आप पेड से झडने लगते है इनका व्रक्ष इतना लम्बा और बडा होता हे कि इन ब्रक्षो पर चड पाना आम जन के लिये सम्भव ही नही होता क्रश्ण लीला मे भी इन फलो का सहज ढंग से वर्णन मिलता है अब इन फूलो को सिर्फ देव पूजन के वक्त ही उपयोग किया जाता है वक्त गुजरने के साथ आमजन इन फूलो का महत्व भूल से गये है।
ग्वालियर सनातन काल से पलाश के फूलो का अपना अलग ही महत्व है पुराने समय मे जब सिन्थेटिक कलर नही होते थे तब इन फूलो को पीसकर रंग बनाये जाते थे पलाश के फूल होली के त्योहार आते ही खिल उठते है और अपने आप पेड से झडने लगते है इनका व्रक्ष इतना लम्बा और बडा होता हे कि इन ब्रक्षो पर चड पाना आम जन के लिये सम्भव ही नही होता क्रश्ण लीला मे भी इन फलो का सहज ढंग से वर्णन मिलता है अब इन फूलो को सिर्फ देव पूजन के वक्त ही उपयोग किया जाता है वक्त गुजरने के साथ आमजन इन फूलो का महत्व भूल से गये है।
ग्वालियर सनातन काल से पलाश के फूलो का अपना अलग ही महत्व है पुराने समय मे जब सिन्थेटिक कलर नही होते थे तब इन फूलो को पीसकर रंग बनाये जाते थे पलाश के फूल होली के त्योहार आते ही खिल उठते है और अपने आप पेड से झडने लगते है इनका व्रक्ष इतना लम्बा और बडा होता हे कि इन ब्रक्षो पर चड पाना आम जन के लिये सम्भव ही नही होता क्रश्ण लीला मे भी इन फलो का सहज ढंग से वर्णन मिलता है अब इन फूलो को सिर्फ देव पूजन के वक्त ही उपयोग किया जाता है वक्त गुजरने के साथ आमजन इन फूलो का महत्व भूल से गये है।