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ग्रामीण परिवेश में आज भी लोक संगीत एवं लोक कलाएं विद्यमान

locationग्वालियरPublished: Nov 24, 2021 09:02:42 am

Submitted by:

Mahesh Gupta

संगीत विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय व्याख्यानमाला

ग्रामीण परिवेश में आज भी लोक संगीत एवं लोक कलाएं विद्यमान

ग्रामीण परिवेश में आज भी लोक संगीत एवं लोक कलाएं विद्यमान

ग्वालियर.

बांसुरी वाद्य प्राचीनतम वाद्यों में से एक है। बांसुरी, शंख, वीणा आदि समस्त वाद्यों का संबंध देवलोक से है। हमारे ग्रामीण परिवेश में आज भी लोक संगीत एवं लोक कलाएं विद्यमान हैं, जिनसे भारतीय संगीत एवं संस्कृति का विकास हुआ है। शास्त्रीय संगीत प्रस्तुति की परिपूर्णता लोक संगीत के बिना अधूरी है। यह बात मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित बांसुरी वादक पद्मविभूषण पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के पंचम सत्र में कही। यह आयोजन राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की ओर से हुआ, जिसका विषय ‘भारतीय संस्कृति की संवाहक: हमारी लोक कलाएं’ रखा गया। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पं. साहित्य कुमार नाहर ने की। सूत्र संचालन श्री मनीष करवड़े ने किया।
लोक संगीत में स्वच्छंदत, शास्त्रीय संगीत नियमों से बंधा
अतिथि वक्ता प्रो. राजेश शाह ने कहा कि लोक संगीत एवं कलाएं शास्त्रीय संगीत एवं कलाओं का आधार हैं। लोक कलाओं का संवर्धित स्वरूप शाास्त्रीय संगीत है। लोक कलाएं भारतीय संस्कृति की संवाहक के साथ संवर्धक भी हैं। आपने कहा कि लोक संगीत में स्वच्छंदता है, जबकि शास्त्रीय संगीत नियमों से बंधा हुआ है।
राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है संस्कृति
अतिथि वक्ता बांसुरी वादक पं. चेतन जोशी ने कहा कि भारतीय संगीत अनुभव करने का विषय है। संस्कृति एवं कलाएं निरंतर प्रवाहमान हैं। संस्कृति राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। कलाओं द्वारा संस्कृति का ललित परिचय होता है। नवीन पीढ़ी में कला एवं संस्कृति के संवहन का माध्यम लोक कलाएं हैं।
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