कंपू तिराहा से महावीर धर्मशाला तक इन वाहनों का जमाबड़ा सडक़ पर रोजाना सुबह 8 बजे से लग जाता है, जो रात 9 बजे के बाद ही हटते हैं। इसके कारण रोजाना 8 से 10 बार यहां जाम लगता है। अब कई लोग इस रोड को टैक्सी स्टैंड के नाम से भी जानने लगे हैं, जबकि यहां इनका कोई स्टैंड नहीं है। कंपू पर करीब 40 से 50 वाहन और महाराज बाड़े पर भी इतनी संख्या में ऐसे वाहन खड़े हो रहे हैं।
परिवहन विभाग द्वारा टैक्सी परमिट के कोटे के वाहनों के लिए अलग पहचान बना रखी है। टैक्सी परमिट होने पर इनका अलग टैक्स भरना पड़ता है। इसके अलावा जो वाहन टैक्सी परमिट में है उनकी नंबर प्लेट पीले कलर की होती है, जबकि कंपू, महाराज बाड़े पर खड़े होने वाले 95 प्रतिशत वाहन बिना पीली नंबर प्लेट के हैं।
ऐसा ही कुछ हाल सरकारी दफ्तरों में लगने वाले प्राइवेट वाहन का है। अधिकांश सरकारी दफ्तरों में लगने वाले निजी वाहन ही हैं। टैक्सी परमिट वाले वाहनों की संख्या बहुत ही कम है, जबकि नियम है कि टैक्सी परमिट के वाहन ही लगाए जाएं। इस तरफ भी संबधित विभाग को ध्यान देने की जरूरत है।
प्रशासन ने भी टैक्सी परमिट वाले वाहनों के लिए कोई जगह तय नहीं की है। प्रशासन को भी चाहिए कि टैक्सी परमिट वाले वाहनों के लिए कोई स्थान तय हो, जिससे ऐसे वाहन वहीं खड़े किए जाए। इससे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था न बिगड़े।
वाहनों का टैक्सी परमिट लेने पर खर्चा काफी बढ़ जाता है। इनका टैक्स भी ज्यादा रहता है। इसलिए वाहन संचालक टैक्सी परमिट न लेकर अवैध तरीके से इन वाहनों को टैक्सी कोटे में चला रहे हैं। इससे रोड टैक्स की खुलेआम चोरी की जा रही है।
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई है। न तो जनता सुधरना चाहती है न ही परिवहन और ट्रैफिक विभाग जिम्मेदारी से काम करना चाहते हैं। इसका एक उदाहरण गोला का मंदिर चौराहे के पास देखने को मिल जाएगा। सडक़ किनारे फुटपाथ को कार बाजार ने घेर रखा है। करीब 80 से 100 वाहन यहां खड़े रहते हैं। फुटपाथ फुल होने के बाद कुछ वाहन सडक़ पर भी खड़े कर दिए जाते हैं। इस कारण यातायात व्यवस्था बिगड़ती है। कई बार जाम भी लग जाता है। पुलिस के अधिकारियों की नजर में यह कार बाजार है, लेकिन कार्रवाई कोई नहीं करता। जबकि कार बाजार लगाने वाले संचालकों को चाहिए कि इसके लिए स्वयं की जगह ले या फिर किसी ऐसी जगह इन वाहनों को खड़ा करे, जहां ट्रैफिक व्यवस्था न बिगड़े।