ग्वालियर

हौसले और जिद से दबाया मेहनत का बटन तो अंधेरे में उगा उम्मीद का सूरज

यह कहानी नहीं बल्कि एक दास्तान है, जिसमें पहले पत्नी ने अपना जमा जमाया करियर छोड़ कर नेचुरल फार्मिंग को अपनाया और अपनी हिम्मत…

ग्वालियरMar 08, 2021 / 06:05 pm

रिज़वान खान

हौसले और जिद से दबाया मेहनत का बटन तो अंधेरे में उगा उम्मीद का सूरज

ग्वालियर. यह कहानी नहीं बल्कि एक दास्तान है, जिसमें पहले पत्नी ने अपना जमा जमाया करियर छोड़ कर नेचुरल फार्मिंग को अपनाया और अपनी हिम्मत, हौंसले और जिद से जिन खेतों में सिर्फ धान उगती थी, वहां मशरूम की चार किस्मों का उत्पादन करके दिखा दिया। यहां की अंधेरी झोपडिय़ों में अब हर दिन करीब 4 क्विंटल मशरूम निकल रहा है।
खेती के लिए लगन ऐसी कि अपने खेतों से समय निकाला और मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, आसाम सहित 12 राज्यों में दस हजार किसानों को भी नेचुरल फार्मिंग से जोड़ लिया। पत्नी से पे्ररित पति ने भी प्रतिष्ठित इंटरनेशनल कंपनी से मिल रहे 24 लाख रुपए वार्षिक पैकेज को तिलांजलि दे दी और एसी कैबिन में बैठकर काम करने की बजाय खेत के प्राकृतिक वातावरण को अपना लिया है। यहां बात समचौली निवासी इंदु पचौरी की हो रही है, इनके खेतों में रासायनिक खाद का उपयोग किए बगैर 15 बीघा जमीन में मशरूम के अलावा कलौंजी, काला गेहूं, पीली सरसों, स्ट्राबेरी, प्याज सहित अन्य नगद फ सल लहलहा रही हैं। खेती का हिसाब दसवीं पास मोहिनी, बीए प्रथम वर्ष में अध्ययनरत पल्लवी, हायर सैकंडरी पास ऋ चा, प्राथमिक शिक्षित आदिवासी महिला छुट्टन, पिस्ता, राखी, गुडिय़ा, रोशनी सहित अन्य युवतियोंं को प्रशिक्षित करके मशरूम और परंपरागत बीजों को बचाने के लिए हो रही खेती के काम में सहयोगी बनाया है। नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए मां शीतला नेचुरल फूड प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाकर जिले के 300 किसानों को भी जोड़ा है।

विलुप्त बीज कर रहे संरक्षित
विलुप्त हो रहे भारतीय बीजों में शामिल गेहूं की किस्मों में खपली, बंशी, कठिया, फूलों की किस्मों में गुलाब, गुड़हल, गेंदा, गिल्हैटी, औषधीय पौधों में विधारा, गिलोय, पुत्रजीवा, हरड़, बहेड़ा, आंवला, तुलसी, लटजीरा, अजुन सहित अन्य पौधों को संरक्षित किया है। धान की किस्मों में काला जीरा, जीराशंकर, बासमती की सभी किस्में संरक्षित की हैं।

असफ लता के बाद मिला लक्ष्य
– देहरादून की निवासी इंदु पचौरी ने केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया।
– जिले के गुठीना गांव में किराए की जमीन पर खेती शुरू की। लॉकडाउन की वजह से यह प्रोजेक्ट फेल हो गया।
– समचौली गांव में अपने ससुर से जमीन लेकर खेती की और अब सफलता मिल रही है।
– मशरूम की बटन, ऑस्टर, गेनोडरमा, मिल्की और सटाके किस्मों का उत्पादन हो रहा है।
– बीते वर्ष 4 टन मशरूम हुआ और इस वर्ष एक क्विंटल हर दूसरे दिन उत्पादन।

यह है प्रोफइल
– 48 वर्षीय इंदु पचौरी ने एमए, एमफिल, एमएड किया है।
– 50 वर्षीय ओमबाबू शर्मा ने बीएससी, एमए, एमफिल, एमबीए और एमएएसडब्ल्यू करने के बाद विभिन्न कंपनियों में वरिष्ठ पद पर काम किया और बीते वर्ष रीजनल मैनेजर के पद से रिजाइन करके पत्नी के काम को आगे बढ़ाने में लग गए।

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