ग्वालियर

कोरोना के पहले पांच दिन गोल्डन पीरियड, ट्रीटमेंट लेने से 90 से 98 परसेंट रहता है रिकवर रेट : डॉ. लहारिया

आटीएम यूनिविर्सिटी ग्वालियर में इंडस्ट्रियल एक्सपर्ट लेक्चर

ग्वालियरJun 19, 2021 / 11:11 am

Mahesh Gupta

कोरोना के पहले पांच दिन गोल्डन पीरियड, ट्रीटमेंट लेने से 90 से 98 परसेंट रहता है रिकवर रेट

ग्वालियर.
कोरोना से रिकवरी का सबसे गोल्डन पीरियड होता है, पहले पांच दिन। अगर इस समय सही ट्रीटमेंट मिल जाता है, तो 90-98 प्रतिशत मरीज रिकवर हो जाते हैं। इससे ज्यादा दिन होने पर हर दिन रिकवरी की उम्मीद कम होती जाती है। खासकर जो 10 दिन के अंदर ट्रीटमेंट नहीं लेते उनकी हालत ज्यादा गंभीर हो सकती है। इसलिए जिससे भी आप मिलते हैं, उन्हे समझाए कि लक्षण दिखने पर तुरंत ट्रीटमेंट शुरू करें। 1 अप्रेल से 31 मई के बीच देश में 1.6 करोड़ कोविड-19 केसेस देखने में आए। इसके साथ ही ब्लैक फंगस के केसेस भी कोरोना पेशेंट्स में देखने को मिले, लेकिन वो टोटल केस से काफी कम थे। ऐसे में यह गलतफहमी न रखें कि हर कोरोना पेशेंट को ब्लैक फंगस होना ही है। डर से ज्यादा सावधानी पर फोकस करें और वैक्सीनेशन जरूर करवाएं। मास्क व सोशल डिस्टेंसिंग का पालन जरूर करें। यह जानकारी दे रहे थे कॉर्डियोलॉजिस्ट एंड मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. दीपांकर लहारिया। वे आइटीएम यूनिवर्सिटी में आयोजित हुए इंडस्ट्रियल एक्सपर्ट लेक्चर में स्पीकर के रूप में शामिल हुए थे।

वेव के आखिर में इन्फेक्टेड पर रहा ज्यादा असर
इस दौरान डॉ. लहारिया ने कोरोना की शुरुआत, उसके लक्षण व गंभीर लक्षण, सावधानियां, वैक्सीनेशन आदि के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि हम सबने देखा सेकंड वेव का रिकवरी ग्राफ वक्त के साथ नीचे जाता रहा, जिसका कारण वायरस म्यूटेनिंग रहा और वो दिन पर दिन स्ट्रांग होता रहा। जो इस वेव के आखिर में इंफेक्टेड हुए उन पर वायरस बहुत ज्यादा प्रभावी रहा। इस कारण उन्हें बहुत स्ट्रगल करना पड़ा। इसके बावजूद जिन्होंने गोल्डन पीरियड यानि 5 दिन में ट्रीटमेंट करवा लिया वे जल्द ठीक हुए। इससे पूर्व इंडस्ट्री सेल के डीन डॉ रतन कुमार जैन ने इंडस्ट्रियल कांक्लेव का महत्व और वेबिनार के बारे में जानकारी दी। इस मौके पर डीन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी डॉ रंजीत सिंह तोमर, एचओडी मैकेनिकल-सिविल एचओडी डॉ मुकेश कुमार पांडे सहित अन्य विभागों के डीन, एचओडी, फैकल्टीज व स्टूडेंट्स ऑनलाइन रूप से मौजूद थे।

वैक्सीनेशन से पहले रखा जाने वाला ध्यान
डॉ. दीपांकर लहारिया ने बताया कि आजकल वैक्सीन को लेकर लोगों में असमंजस बना है कि भारत में उपलब्ध कोविशील्ड और कोवैक्सीन में से कौन सी बेहतर है। स्टडीज के मुताबिक दोनों ही वैक्सीन की एफिशियंसी 80-95 प्रतिशत है। वैक्सीनेशन न कराने से बेहतर दोनों वैक्सीन हैं। वर्तमान में उपलब्ध वैक्सीन 18 साल से ज्यादा की उम्र वाले लोगों के लिए मान्य है। अगर आप किसी और वैक्सीन को भी लिए हैं या लेने वाले हैं, तो कोविड 19 की वैक्सीनेशन के बीच 14 दिन का अंतर होना चाहिए। जिन्हें काविड के लक्षण है या जो पॉजीटिव कोविड पेशेंट के सम्पर्क में आए हैं तो उन्हें कम से कम 4 सप्ताह के बाद वैक्सीनेशन कराना चाहिए।

वैक्सीनेशन के बाद भी इंफेक्शन के चांसेस
वैक्सीन की पहली डोज के बाद हम पार्शियल इम्यून होते हैं। दूसरी डोज के तीसरे हफ्ते के बाद इम्युनिटी आती है। हालांकि इसके बाद भी 10-20 प्रतिशत इंफेक्शन होने के चांसेस रहते। लेकिन वैक्सीनेशन करवाने से गंभीर कोरोना नहीं होता। हॉस्पिटलाइज्ड होने और क्रिटिकल कंडीशन होने के चांसेस भी कम रहता है। अगर कोई दूसरी डोज के बाद एंटीबॉडी टेस्ट करवाना चाहते हैं, तो तीन सप्ताह के बाद टेस्ट करवा सकते हैं। कोविड 19 का इंफेक्शन के बाद 10-15 प्रतिशत चांस ही दोबारा इंफेक्शन होने के होते हैं।

जीवन की परवाह किए बिना कोरोना वॉरियर्स ने निभाया कर्तव्य: डॉ खेड़कर
आइटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के प्रो वाइस चांसलर डॉ एसके नारायण खेड़कर ने कहा कि आज से 100 साल पहले स्पेनिश फ्लू के दौरान भी दुनिया ने ऐसे ही बुरे वक्त को देखा था। इसने लोगों की जिंदगी, देश का विकास सब प्रभावित कर रखा था, लेकिन मेडिकल व टेक्नोलॉजिकल एडवांटेज से इससे उबर पाए। उस समय भी सामान्य नियम जैसे मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग व सेनेटाइजेशन और मानवता के बल पर उस पेंडेमिकर से बाहर आ पाए। इसमें सबसे ज्यादा रोल रहा कोरोना वॉरियर्स का, जो खुद की जिंदगी की परवाह किए बिना कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में लगे रहे। वर्कलोड, रिस्पांसिबिलिटी और डेंजर के बीच वे अपना कर्तव्य निभाते रहे। हम सभी की नैतिकता बनती है कि हम अपने समाज के कोरोना वॉरियर्स का सम्मान तो करे ही उनके प्रति आभार व्यक्त करना न भूले।

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