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अधिकारियों के रुचि नहीं लेने से साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की जमीन हार चुका है शासन

locationग्वालियरPublished: Jan 11, 2019 01:11:00 am

Submitted by:

Rahul rai

जिला न्यायालय में शासन के खिलाफ जमीन संबंधी दो सैकड़ा से अधिक मामले लंबित हैं। पिछले पांच साल में भूमाफिया अरबों की जमीन अदालत में मामले लगाकर अपने नाम कर चुके हैं।

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अधिकारियों के रुचि नहीं लेने से साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की जमीन हार चुका है शासन

ग्वालियर। जिले में अधिकारियों द्वारा रुचि नहीं लेने से शासन अब तक साढ़े पांच हजार करोड़ रुपए से अधिक की जमीन हार चुका है। हाल ही में विद्याविहार की 315 बीघा जमीन जो सेना के बाद लोक निर्माण विभाग के नाम थी, शासन हार चुका है। इससे पहले राधेलाल बनाम मध्यप्रदेश शासन के मामले में सिटी सेंटर क्षेत्र की सौ करोड़ से अधिक की जमीन हारने के ८ साल बाद भी शासन ने इस मामले में कोई अपील नहीं की। अधिकारी बार-बार की हार से भी कोई सबक नहीं ले रहे हैं और अदालत में चल रहे जमीन के मामलों में न तो जवाब पेश कर रहे हैं, न उन्हें तवज्जो दे रहे हैं।
जिला न्यायालय में शासन के खिलाफ जमीन संबंधी दो सैकड़ा से अधिक मामले लंबित हैं। पिछले पांच साल में भूमाफिया अरबों की जमीन अदालत में मामले लगाकर अपने नाम कर चुके हैं। जिस जमीन पर जिला न्यायालय का नवीन भवन बन रहा है, उस जमीन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।
यहां की जमीन को एक तहसीलदार ने कृषि भूमि मानते हुए निजी घोषित कर दिया, जबकि जिला न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के आदेश पर इस जमीन की जांच में पाया था कि यहां कभी खेती नहीं हुई थी। अपील तक नहीं कीसिरोल की १६ बीघा जमीन के मामले में प्रकरण क्रमांक 175 ए/2008 राधेलाल बनाम शासन में वर्ष 2010 में व्यवहार न्यायालय ने राधेलाल के पक्ष में मौखिक साक्ष्य के आधार पर डिक्री कर दी।
इस मामले में राधेलाल द्वारा जो फर्जी दस्तावेज पेश किए गए थे, उनका शासन के अधिकारियों ने सत्यापन ही नहीं कराया। उन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर यह डिक्री प्राप्त की गई। इसके खिलाफ आज तक शासन ने अपील नहीं की। जीडीए ने समय बीतने के बाद इस मामले में अपील की। इस प्रकरण में पिछले साल शासन ने वे दस्तावेज पेश किए जो उसे 2008 में पेश करने चाहिए थे।
जब अधिकारियों पर दबाव पड़ा तब अधिकारियों ने राधेलाल और उसके मुख्तयाआम के खिलाफ सिरोल थाने में धोखाधड़ी एवं फर्जी दस्तावेज तैयार करने की रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन इस मामले में पुलिस भी अभी तक फर्जीवाड़ा करने वालों तक नहीं पहुंच सकी है। इस मामले में जीडीए की अपील खारिज हो चुकी है, जिसके खिलाफ अभी तक अपील पेश नहीं हो सकी है। यहां भी अधिकारी मामले को घुमा रहे हैं।
एसपी ऑफिस भी शिकार
जिस जमीन पर एसपी ऑफिस बना है, वह जमीन भी ऐसे ही लोगों ने एक मामला दर्ज कर कानूनी रूप से अपने नाम दर्ज करा ली है। यह जमीन दो लोगों के नाम हुई है, जिसमें एक व्यक्ति काल्पनिक सिद्ध हुआ है, उसे न तो पुलिस ढूंढ पाई है, न ही प्रशासन। जमीन माफिया यहां इतना हावी है कि पुलिस भी इस मामले के दस्तावेज हासिल नहीं कर पाई थी।
वकालत नामे भी पेश नहीं हो पा रहे
लोक अभियोजक बृजमोहन श्रीवास्तव ने कलक्टर को एक पत्र लिखा है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अधिकारी जमीन के मामलों में रुचि नहीं ले रहे हैं, इस कारण जो मामले लंबित हैं उनमें एकपक्षीय आदेश हो सकते हैं। पहले भी इसी तरह का पत्र लिखा गया था। अधिकारियों के अदालत में नहीं आने से शासन के मामलों में वकालत नामे तक पेश नहीं हो पा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट से भी हारे
लोहामंडी की जमीन के मामले में भी शासन की ओर से कमजोर पक्ष रखा गया। आखिर शासन सुप्रीम कोर्ट तक हारता रहा। जमीन से जुड़े मामलों की व्यापक जांच और इसके जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग उठती रही है, लेकिन इसे लगातार दबाया जा रहा है।
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