सुबह 8.30 बजे से पहले ही पहुंच जाते हैं लोग देश की आजादी में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदानों को वाली पीढ़ी को उनके बारे में बताना आज के समय की बड़ी आवश्यकता है। इसी उद्देश्य को लेकर भारत विकास परिषद की राष्ट्रगान प्रसारण समिति ने अनूठी पहल 12 अगस्त 2018 से की है। इसमें दो मिनट राष्ट्र के नाम कार्यक्रम का शुभारंभ महाराज बाड़ा पोस्ट ऑफिस से किया गया। इसके अंतर्गत हर रोज सुबह दो मिनट का जन- गण- मन राष्ट्रगान शहर के लोगों के साथ किया जा रहा है। इसमें हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं। कार्यक्रम को लेकर अब धीरे-धीरे लोगों का जुड़ाव बढ़ता ही जा रही है। कार्यक्रम के संयोजक अरविंद दूदावत हर दिन नियमित लोगों को जोड़कर कार्यक्रम को कराने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। स्कूली बच्चे भी शामिल होते हैं महाराज बाड़ा पर सुबह इस कार्यक्रम में अक्सर स्कूली बच्चे भी शामिल हो जाते हैं। जिस दिन भी कार्यक्रम में स्कूली बच्चे शामिल होते हैं तब महाराज बाड़ा पर अलग से व्यवस्था कर ली जाती है। सफाई का देते है संदेश समिति के सदस्य यहां आने वाले लोगों को राष्ट्रगान के साथ साफ- सफाई का भी संदेश देते हैं। इस संदेश के माध्यम से सभी को बताया जाता है कि हम अपने घर और दुकान का कचरा नियमित स्थान पर और समय से पूर्व बाहर रखें। जिससे कचरा सही समय पर साफ हो सके। इसके साथ ही लोगों को जागरुक करने के लिए भी समझाइश दी जाती है। हर उम्र वर्ग के लोग हैं पहुंचते जन-गण-मन सुबह 8.30 बजे से दो मिनट का होता है। लेकिन कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सुबह 8.25 बजे तक यहां पर हर रोज लोग पहुंच जाते हैं। राष्ट्रगान में पांच वर्ष से लेकर 70 वर्ष तक के लोग हर मौसम में आते हैं। कार्यक्रम बारह लोगों को लेकर शुरू किया गया था, लेकिन आज इसमें शामिल होने वाले लोगों की संख्या अच्छी खासी पहुंच गई है।
शहर में एक ऐसा व्यक्ति है जो गुटखे की पीक को साफ कर सफाई का संदेश दे रहा है। तिघरा रोड के नीचे माधव नगर गोल पहाडिय़ा पर रहने वाले उदयभान रजक कुछ ऐसा ही काम कर रहे हैं। एक वर्ष पूर्व 12 जनवरी से शुरू इस अभियान में उन्होंने 10 और लोगों को भी जोड़ा था ताकि स्वच्छ भारत बने उदयभान बताते हैं शासकीय संपत्तियों और दूसरी जगहों पर पीक देख बाहर से आने वाले लोगों पर शहर की गलत छवि पड़ती थी। जागरूक भारत और स्वच्छ भारत की थीम पर मैंने इस काम को करने की शुरूआत की। रोज दो घंटे करते हैं सफाई वह पीक को साफ करने रोज दो घंटे का समय देते हैं। ब्रश और पानी की बॉटल को साथ लेकर चलते हैं। वे कहते हैं कि हमारा शहर ऐतिहासिक दृष्टि से भी इतना सुंदर शहर है फिर लोग इसे गुटखे की पीक से गंदा क्यों करते हैं।
संविधान के 11 मौलिक कर्तव्यों में बच्चों को शिक्षा दिलाना भी एक कर्तव्य है। अभिभावकों को अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना तो नैतिक कर्तव्य भी है। श्योपुर में भी ऐसी आदिवासी बेटियों को जो स्कूल नहीं जा रही हैं या बीच में पढ़ाई छोड़ चुकी हैं, उन्हें न केवल प्रारंभिक शिक्षा दी जा रही है, बल्कि फिर से स्कूल की राह भी बताई जा रही है। ये पहल सामाजिक संस्था महात्मा गांधी सेवा आश्रम ने की। जिले में वर्तमान में 84 केंद्र संचालित हैं। कराहल और बड़ौदा क्षेत्र की बेल्ट में संचालित यहां 80 फीसदी आदिवासी बालिकाएं हैं।
मुरैना जिले का तरसमां गांव। जहां हर घर में देश की रक्षा और सुरक्षा में किए गए बलिदान की कहानियां गूंजती हैं। गांव में करीब 450 परिवार हैं। गांव के 400 जवान तो रिटायर्ड हो चुके हैं और करीब 250 बेटे अब तक सेना में रहकर देश सेवा कर रहे हैं। मंजिल सेना में भर्ती होना गांव के नौजवानों में देश सेवा का इतना जुनून सवार है कि रात दिन सेना में भर्ती होने के लिए तैयारी में जुटे हैं। सुबह होते ही सड़क पर एक्सरसाइज करते दिख जाते हैं। गांव में शहीद बेटों की याद में शहीद पार्क बनाए गए हैं। रिटायर्ड फौजी के बेटे भी सेना में गांव के नहवर सिंह तोमर सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं लेकिन उनके तीनों पुत्र उपेन्द्र तोमर, रामेन्द्र तोमर, सुभाष तोमर सेना में हैं। वहीं रिटायर्ड कैप्टन महेश सिंह तोमर कहते है, मुझे गर्व है कि आर्मी में रहकर मुझे देश सेवा का मौका मिला।
नीडम में कचरे को खाद में बदलने तीन बड़ी नाडेप-खाद टंकियां हैं। इसके अलावा आश्रम में केचुओं से बनने वाली वर्मीकल्चर खाद और गोबर-गैस बनाने के लिए स्थापित कचरा टंकी के दो अलग हिस्से भी मौजूद हैं। पर्यावरण संतुलित नहीं होने से प्रदूषण, कम बारिश जैसी कई समस्याएं होती हैं। इन सबके पीछे कारण है गायब होते जंगल। कुछ लोग हैं जो पर्यावरण को बचाने जुटे हैं उनमें से ही हैं अनिल सरोदे। उन्होंने पर्यावरण के लिए जीवन समर्पित कर दिया। बंजर पहाड़ी को अपनी मेहनत से सींचकर हरा भरा कर दिया। 1995 के बाद बदले हालत विवेकानंद नीडम केन्द्र के ग्वालियर में स्थापना के लिए प्रशासन से 3.5 एकड़ जमीन पहाड़ी पर मिली। 1995 में जब यहां पर आश्रम की स्थापना की गई तो इसकी हालत देखकर लगता ही नहीं था कि यहां पर कोई पेड़ लग सकता है लेकिन उन्होंने कुछ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बंजर भूमि को हरे भरे जंगल में तब्दील कर दिया।
13 साल से अपने साथी अफसरों के साथ कर रहे सेवा राष्ट्र रक्षकों में देश सेवा का जज्बा सेवानिवृत्ति के बाद भी बरकरार रहता है। ऐसा ही कुछ नैवी से रिटायर लेफ्टीनेंट कमांडेट गुरुवचन सिंह के साथ है। वे अपने गांव करैरा लौट आए और यहीं रहकर 13 साल से बच्चों का भविष्य संवारकर अपने मौलिक दायित्व को निभा रहे हैं। खंडहर को बनाया स्कूल 13 साल से गरीब बच्चों को पढ़ाने में गुरुवचन सिंह जुटे हैं। बच्चों को कॉपी-किताब और शिक्षा देने के साथ ही उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं। डेनिडा में रहने वाले गुरुवचन सिंह 14 साल पूर्व रिटायर हुए जब करैरा लौटा तो यहां देखा कई गरीब प्रतिभावान बच्चों के पास पढ़ाई पैसे नहीं थे। बच्चों का भविष्य संवारेंगे। घर से 5 किमी दूर एक पुराने खंडहर बन चुके शासकीय स्कूल की दीवार को ब्लैक बोर्ड बनाया। पेड़ के नीचे ही नि:शुल्क कक्षाएं शुरू कीं। जब चाहे तब तक पढ़ें गुरुवचन सिंह कहते है, मेरे पास पढ़ा हुआ बच्चा गणित व इंग्लिश में कमजोर नहीं हो सकता। जिन बच्चों को शिक्षा दी है, उनमें से कुछ मुझसे भी आगे निकल गए। हम कभी अवकाश नहीं करते और न ही बच्चों के लिए समय निर्धारित है, जब जिसे समय मिलता है, वो हमारी क्लास में आकर अपनी तैयारी करता है। ऊंचे पदों पर गए बच्चे इस क्लास की स्टूडेंट रही ग्राम कुम्हरपुरा की डॉली प्रजापति का वर्ष 2014 में आर्मी हॉस्पीटल में चयन हो चुका है। महेंद्र प्रजापति का एयर फोर्स में और नरेंद्र का आर्मी में चयन हुआ है। 7 बच्चे अभी एसएससी एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।
13 साल से अपने साथी अफसरों के साथ कर रहे सेवा राष्ट्र रक्षकों में देश सेवा का जज्बा सेवानिवृत्ति के बाद भी बरकरार रहता है। ऐसा ही कुछ नैवी से रिटायर लेफ्टीनेंट कमांडेट गुरुवचन सिंह के साथ है। वे अपने गांव करैरा लौट आए और यहीं रहकर 13 साल से बच्चों का भविष्य संवारकर अपने मौलिक दायित्व को निभा रहे हैं। खंडहर को बनाया स्कूल 13 साल से गरीब बच्चों को पढ़ाने में गुरुवचन सिंह जुटे हैं। बच्चों को कॉपी-किताब और शिक्षा देने के साथ ही उनकी आर्थिक मदद भी करते हैं। डेनिडा में रहने वाले गुरुवचन सिंह 14 साल पूर्व रिटायर हुए जब करैरा लौटा तो यहां देखा कई गरीब प्रतिभावान बच्चों के पास पढ़ाई पैसे नहीं थे। बच्चों का भविष्य संवारेंगे। घर से 5 किमी दूर एक पुराने खंडहर बन चुके शासकीय स्कूल की दीवार को ब्लैक बोर्ड बनाया। पेड़ के नीचे ही नि:शुल्क कक्षाएं शुरू कीं। जब चाहे तब तक पढ़ें गुरुवचन सिंह कहते है, मेरे पास पढ़ा हुआ बच्चा गणित व इंग्लिश में कमजोर नहीं हो सकता। जिन बच्चों को शिक्षा दी है, उनमें से कुछ मुझसे भी आगे निकल गए। हम कभी अवकाश नहीं करते और न ही बच्चों के लिए समय निर्धारित है, जब जिसे समय मिलता है, वो हमारी क्लास में आकर अपनी तैयारी करता है। ऊंचे पदों पर गए बच्चे इस क्लास की स्टूडेंट रही ग्राम कुम्हरपुरा की डॉली प्रजापति का वर्ष 2014 में आर्मी हॉस्पीटल में चयन हो चुका है। महेंद्र प्रजापति का एयर फोर्स में और नरेंद्र का आर्मी में चयन हुआ है। 7 बच्चे अभी एसएससी एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।