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ग्वालियर-चंबल की जनता का निर्णय: नतीजों ने नेतृत्वविहीन कांग्रेस में जान फूंकी, भाजपा के दिग्गज नहीं दिखा पाए असर

locationग्वालियरPublished: Jul 21, 2022 12:54:14 pm

– गांव से लेकर कस्बों और शहरों तक आकार ले रही हैं जनता की उम्मीदें – जानें इस चुनाव में आपके शहर की जनता ने राजनीतिक पार्टियों को क्या दिया सबक?

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ग्वालियर@नितिन त्रिपाठी

चुनावों के दौरान किए जाने वाले तमाम वादों व दावों के बीच जनता को बहलाने से लेकर किसी भी तरह से उन्हें अपनी ओर खीचने की राजनैतिक पार्टियों की ओर से तमाम प्रयास किए जाते हैं। इस तरह के तमाम वादों व प्रयासों के बाद आखिरकार अब मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों के परिणाम सबके सामने आ चुके हैं। ऐसे में जहां जनता ने इस बार कुछ पार्टियों की बातों को लेकर हामी भरी तो वहीं कई वादों व दावों को सिरे से नकारते हुए राजनीतिक दलों को सियासी सबक देने का भी काम किया है। ऐसे में आज हम विश्लेषण कर बता रहे हैं कि इन चुनावों से किसे क्या सबक मिला… कौन कहां मजबूत रहा और कहां कमजोर…
ऐसे समझें ग्वालियर-चंबल का सियासी सबक
ग्वालियर-चंबल के राजनीतिक बदलाव ने प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराई थी। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले अंचल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के प्रभाव और ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन से जहां भाजपा की ताकत दोगुनी मानी जा रही थी, वहीं कांग्रेस को नेतृत्वविहीन मानते हुए उसे कमजोर आंका जा रहा था।

राजनीतिकों के इस आकलन को पंचायत और निकाय के चुनावों ने गलत ठहरा दिया। नतीजों ने जहां कांग्रेस में नई जान फूंकी है, वहीं भाजपा के दिग्गजों का प्रभाव घटा है। भाजपा को सरकार देने वाले ग्वालियर-चंबल अंचल को संगठन से लेकर सरकार तक में बड़ा प्रतिनिधित्व सौंपा तो अपनी सरकार से हाथ धो बैठी कांग्रेस का फोकस भी अंचल पर हुआ। पार्टी कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत के बाद विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी अंचल के डॉ. गोविंद सिंह को दी गई।

इस नियुक्ति से कांग्रेस ने मुकाबलेे में उतरने के अपने मंसूबे साफ कर दिए, लेकिन भाजपा भाजपा अपने गढ़ में खुद को सशक्त मानते हुए चुनौती नजरअंदाज करती रही। कार्यकर्ताओं की नाराजगी से लेकर बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी में फंसी भाजपा को कांग्रेस झटका देने में कामयाब हो गई। सरकार बनाकर अपनी ताकत दिखाने वाले सिंधिया और उनके समर्थक चुनाव में भाजपा की नैया पार नहीं लगा सके। तोमर जैसे खिवैया भी भाजपा की नाव में हो रहे सुराख को नहीं पहचान पाए।

इन दो बड़े नेताओं के बीच ग्वालियर और मुरैना की हार भाजपा के लिए बड़ा झटका है। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी भले ही ग्वालियर-चंबल की राजनीति में सीधे तौर पर दखल नहीं रखते, फिर भी संगठन पदाधिकारियों को लेकर अपने कार्यकर्ताओं की नाराजगी को वे नहीं देख पाए। भाजपा को दतिया छोड़ अंचल के किसी भी जिले में निकाय स्तर पर स्पष्ट बहुमत नहीं मिल सका है।

मुरैना तोमर का प्रभाव क्षेत्र है जहां सिंधिया ने अपने समर्थकों के साथ पैर पसारे हैं। सिंधिया-तोमर भले ही ऊपर से एकजुट दिखें, लेकिन उनके बीच की राजनीतिक दूरी छोटे कार्यकर्ताओं को भी नजर आ रही है।

मुरैना नगर निगम चुनाव में कांग्रेस ने दूसरे ही कार्यकाल में भाजपा से महापौर पद छीन लिया। शहर की खुदी पड़ी सड़कों के बीच रोड-शो भाजपा नहीं निकाल पाई। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद सिंह तोमर ने संयुक्त रूप से फाटक बाहर सभा की थी। प्रत्याशी को लेकर कोई विरोध नहीं था, लेकिन नगर निगम का पिछला कार्यकाल और खास तौर से दो साल प्रशासक के नेतृत्व वाला कार्यकाल नैया डूबने का कारण बना। भाजपा को पार्षदों में कोई घाटा नहीं हुआ है। पिछली परिसद में भी 15 थे, इस बार भी इतने ही निर्वाचित हुए हैं। लेकिन कांग्रेस को एक पार्षद का फायदा हुआ है, उसके पार्षद 18 से बढ़कर 19 हो गए हैं।

वहीं भाजपा से बगावत कर आप से चुनाव लड़े वार्ड 13 के प्रत्याशी जीत गए हैं। जबकि नगर के वार्ड क्रमांक 13 से सिंधिया समर्थक केडी डंडोतिया को टिकट मिला था। इसी वार्ड में भाजपा के जिलाध्यक्ष डॉ. योगेशपाल गुप्ता, पूर्व मंत्री मुंशीलाल, निगम अध्यक्ष रघुराज कंंषाना, पूर्व जिलाध्यक्ष केदार सिंह यादव, पूर्व विधायक गजराज सिंह सिकरवार भी इसी वार्ड में रहते हैं। वहीं वार्ड 39 में समाजवादी पार्टी ने सभी प्रमुख दलों को हराकर जीत हासिल की।

 

भिंड के चुनाव नतीजों में भाजपा के मंत्रियों पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह भारी नजर आ रहे हैं। गोहद, मेहगांव और गोरमी स्पष्ट रूप से कांग्रेस के खाते में आए हैं। मंत्री ओपीएस भदौरिया के क्षेत्र गोहद में कांग्रेस बाजी मार ले गई। भिंड नगर निगम में भाजपा ज्यादा वार्ड जीती है। श्रेय विधायक संजीव सिंह कुशवाह को दिया जा रहा है, लेकिन पिछले चुनाव नतीजों के आधार पर देखें तो भाजपा को 12 वार्डों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस 9 की जगह 12 वार्ड जीतकर मुकाबले में आ गई है।
शिवपुरी में भाजपा अपनी प्रतिष्ठा बचाने में सफल रही, लेकिन राज्यमंत्री सुरेश राठखेड़ा के क्षेत्र में कांग्रेस ने सेंध लगा दी। पोहरी में कांग्रेस के केपी सिंह कांग्रेस को मुकाबले में बनाए हुए हैं।
श्योपुर भी नरेंद्र सिंह तोमर के संसदीय क्षेत्र का जिला है। नगर पालिका में भाजपा और कांग्रेस 8-8 वार्ड में जीती हैं। स्पष्ट बहुमत नहीं होने से निर्दलीयों के सहारे जोड़तोड़ करना होगा।

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