हेरिटेज : दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन – जोड़ती है 250 गांवों को
ग्वालियरPublished: Aug 05, 2015 06:07:00 pm
1895 में शुरू की गई ट्रेन जय विलास पैलेस से निकलकर मोतीमहल होते हुए शिवपुरी तक जाती थी
शहर के आसपास के जिलों में यात्रा करने का सबसे सुगम जरिया नैरोगेज ट्रेन ही है। जो यहां के इतिहास को 100 साल से भी अधिक समय से सहेज रही है।1895 में शुरू की गई ट्रेन जय विलास पैलेस से निकलकर मोतीमहल होते हुए शिवपुरी तक जाती थी। उस समय इसका निर्माण सिंधिया वंश के तत्कालीन महाराजा माधवराव सिंधिया ने कराया था। वे इसका उपयोग शिकार खेलने जाने के लिए करते थे। उसी समय जारी एक लेटर में यह कहा गया है कि 1904 और 1911 में भारत आए ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज प्रथम ने दो बार नैरोगेज से यात्राएं की थीं। इस दौरान उनकी रानी क्वीन मेरी भी उनके साथ थीं।
कोल इंजन का होता था उपयोग
नैरोगज की जब शुरूआत हुई थी, तब इसे सिंधिया स्टेट रेलवे ग्वालियर कहा जाता था। उस समय इसे चलाने के लिए कोयले के इंजन का उपयोग होता था। जब देश आजाद हुआ तब इंडियन रेलवे ने डीजल रेल इंजन यानि डीआरसी नाम दिया। इसे कूनो कुमारी एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता रहा है। पहले ये शिवपुरी तक ही जाती थी, लेकिन आजादी के बाद इसे श्योपुर तक बढ़ाया गया और भिंड की सवारियों को भी ये ले जाती थी।
ऎसे पड़ा नैरोगेज नाम
इसमें प्रयोग किए गैज रेलवे में प्रयुक्त सबसे छोटे गैज थे। इसलिए इसका नाम नैरोगेज पड़ा। इसकी चौड़ाई दो फीट यानि 0.610 मीटर है। अपनी शुरूआत से 30 जून 1935 तक ये ग्रेट इंडियन पेनेसुएला कंपनी के नियंत्रण में संचालित होती थी। 1 अप्रैल 1950 में इसे भारत सरकार ने अपने अधीन कर लिया।
199.8 किलोमीटर की दूरी करती है तय
नैरोगेज 28 स्टेशनों के 250 गांवों को सीधे जोड़ती है। ये दुनिया का सबसे लंबा नैरोगेज ट्रेक है। तीन पेयर में ये ट्रेन 35 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भागती है।
हेरिटेज की दृष्टि से महत्वपूर्ण
नैरोगेज ऎतिहासिक दृष्टि से जितनी महत्वपूर्ण है। उतनी हेरिटेज के तौर पर भी है। ग्वालियर और इसके आसपास के उन्नत संस्कृति का प्रतीक इसे कहा जा सकता है।