न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की युगलपीठ ने ग्वालियर विकास प्राधिकरण द्वारा 5146 दिन के विलंब से प्रस्तुत पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करते हुए छिद्दी एवं दामोदर को इस मामले में प्राधिकरण को पक्षकार बनाने के आदेश दिए हैं। प्राधिकरण के इस मामले में पक्षकार बनने के बाद अब अप्रैल में इस मामले की नए सिरे से सुनवाई होगी। अधिवक्ता राघवेन्द्र दीक्षित ने न्यायालय में कहा कि इस मामले में प्राधिकरण को अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं दिया गया। उसे इस प्रकरण में पक्षकार बनाया जाए, क्योंकि जिस जमीन को लेकर विवाद उत्पन्न किया गया है, वह जमीन प्राधिकरण को शासन ने दी थी।
दीक्षित का कहना था कि शासन ने जोधूपुरा की 5290 मीटर जमीन अर्बन सीलिंग एक्ट में अतिशेष घोषित कर दी थी। शासन के इस आदेश के खिलाफ जमीन को अपनी बताते हुए छिद्दी व दामोदर ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने छिद्दी व दामोदर के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले के खिलाफ शासन ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका पेश की, लेकिन यहां भी शासन हार गया। इसके बाद वर्ष 2015 में छिद्दी ने अवमानना याचिका पेश कर कहा कि शासन सरकारी दस्तावेजों में उसका नामांतरण नहीं कर रहा है।
कलक्टर ने जांच में पाया जमीन सरकारी है
जब यह मामला कलक्टर के सामने आया तो उन्होंने दस्तावेजों की जांच में पाया कि जिस जमीन को लेकर विवाद चल रहा है, वह जमीन तो शासन की है और इस जमीन को शासन ने प्राधिकरण को आवास योजना के लिए दिया था।
जब यह मामला कलक्टर के सामने आया तो उन्होंने दस्तावेजों की जांच में पाया कि जिस जमीन को लेकर विवाद चल रहा है, वह जमीन तो शासन की है और इस जमीन को शासन ने प्राधिकरण को आवास योजना के लिए दिया था।
कई मामलों में हुआ है ऐसा
दरअसल, ग्वालियर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण ही प्राधिकरण की विभिन्न योजनाओं में जमीन विवादित कर दी गई है। कुछ लोग इसी प्रयास में रहते हैं कि किस प्रकार जमीन से जुड़े कुछ लोगों को लाभ पहुंचाया जाए। इसी प्रकार शासन के अधिकारी भी जमीन के मामलों में न्यायालय में शासन का पक्ष ही नहीं रखते हैं। सिरोल की जमीन के मामले में जिसमें शासन के खिलाफ आदेश हुआ, उसमें दस्तावेज पेश नहीं हुए थे, इस मामले में शासकीय अधिवक्ता जगदीश प्रसाद शर्मा ने पैरवी की। लोहामंडी के मामले में भी ऐसा ही फैसला हुआ, हाल ही में विद्याविहार के मामले में भी शासन अरबों रुपए की जमीन हार चुका है।
दरअसल, ग्वालियर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों व कर्मचारियों की लापरवाही के कारण ही प्राधिकरण की विभिन्न योजनाओं में जमीन विवादित कर दी गई है। कुछ लोग इसी प्रयास में रहते हैं कि किस प्रकार जमीन से जुड़े कुछ लोगों को लाभ पहुंचाया जाए। इसी प्रकार शासन के अधिकारी भी जमीन के मामलों में न्यायालय में शासन का पक्ष ही नहीं रखते हैं। सिरोल की जमीन के मामले में जिसमें शासन के खिलाफ आदेश हुआ, उसमें दस्तावेज पेश नहीं हुए थे, इस मामले में शासकीय अधिवक्ता जगदीश प्रसाद शर्मा ने पैरवी की। लोहामंडी के मामले में भी ऐसा ही फैसला हुआ, हाल ही में विद्याविहार के मामले में भी शासन अरबों रुपए की जमीन हार चुका है।