न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया ने यह महत्वपूर्ण आदेश गोकरण शर्मा की याचिका पर दिया है। चिटफंड कंपनी उम्मीद कारपोरेशन द्वारा की गई धोखाधड़ी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। लेकिन पुलिस ने चिटफंड कंपनी के संचालकों को जब गिरफ्तार नहीं किया तब गोकरण शर्मा ने एक याचिका प्रस्तुत की। पुलिस ने न्यायालय के आदेश का जब पालन नहीं किया तो उन्होंने अवमानना याचिका प्रस्तुत की। इसके बाद भी जब पालन नहीं हुआ तब उन्होंने फिर एक याचिका प्रस्तुत की। न्यायमूर्ति अहलूवालिया के समक्ष जब यह मामला सुनवाई में आया तो उन्होंने ग्वालियर एसपी को तलब किया। एसपी को तलब करने के बाद पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। न्यायालय ने इस बिंदु पर याचिका का निराकरण कर दिया लेकिन इस मामले में एसपी से पूछा कि आरोपियों की गिरफ्तारी में जिन अधिकारियों ने लापरवाही बरती उन पर क्या कार्रवाई की।
पुलिस कहती रही उन्हें तलाश रहे हैं
केस डायरी के अनुसार पुलिस इस मामले में वर्ष 2017 से यह कहती रही कि आरोपियों को खोजा जा रहा है। लेकिन उन्हें नहीं खोजा गया, फिर उनके गिरफ्तारी वारंट भी जारी हुए। इसके बाद उनकी फरारी की उद्घोषणा भी की गई। न्यायालय ने देखा कि उनके फोटो एक अखबार में प्रकाशित कराकर पुलिस ने फिर केस डायरी को भी नहीं खोला। इस प्रकार पुलिस इन चिटफंडियों को बचाने में लगी रही और न्यायालय को गुमराह किया गया।
इन पर की कार्रवाई
एसपी ग्वालियर ने कोर्ट में कहा कि पुलिस महानिर्देशक के परिपत्र के अनुसार इन अधिकारियों पर कार्रवाई की गई, जिसमें सीएसपी एसएस जादौन, हेमन्त कुमार तिवारी सीएसपी, इंसपेक्टर केके सिंह, इंसपेक्टर उमेश मिश्रा, इंसपेक्टर संतोष यादव, इंसपेक्टर एमएम मालवीय, इंसपेक्टर केपी सिंह यादव एवं सब इंसपेक्टर एसएस परमार पर इस लापरवाही के लिए एक-एक हजार रुपए का जर्माना भी किया गया। उन पर यह दंड उनके द्वारा अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किए जाने पर लगाया गया। लेकिन अधिकारियों ने इस मामले की जांच पूरी कर चार्जशीट प्रस्तुत करने के प्रयास नहीं किए। न्यायालय ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकारी जानबूझकर सो रहे थे।
ये थे चार आरोपी
ग्वालियर थाने में चार साल पहले चिटफंड कंपनी उम्मीद कारपोरेशन के संचालक केशव चौहान, किरण चौहान, लकी चौहान व अमित राघव के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। पुलिस इन चारों को गिरफ्तार नहीं कर रही थी। इस मामले में हाईकोर्ट ने 5 अप्रैल 19 को एसपी को निर्देश दिए थे कि वे कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करे। तब एसपी ने एक-एक हजार रुपए का जुर्माना किया। पुलिस ने इस मामले में एक साल पहले आरोपी गण के खिलाफ धारा 82 के तहत कार्रवाई तो की थी लेकिन धारा 83 के तहत कार्रवाई नहीं की थी।
डीजीपी ने सर्कुलर में दिए हैं डीई के निर्देश : पुलिस महानिर्देशक द्वारा 30 मार्च 19 को कोर्ट से प्राप्त नोटिस वारंट की तामीली सुनिश्चित करने के संबंध में सभी अधीक्षकों को सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया कि तामीली नहीं होने पर पुलिस महानिदेशक का शपथ पत्र कोर्ट में मांगा जाता है यह गंभीर है। भविष्य में ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी करने के निर्देश इस सर्कुलर में दिए गए थे।