हिंदी में बात करने पर करते हैं संकोच
दुनिया में इंग्लिश का प्रचार-प्रसार ज्यादा है। देश के युवाओं का भी ध्यान बड़े पैकेज पर है, जहां इंग्लिश में बात की जाती है। वे हिंदी का व्यवहार करने में संकोच करते हैं। स्कूल में भी हिंदी सीखने को भार स्वरूप मानते हैं। ये हमारे देश की विडम्बना है कि जिनकी मातृभाषा हिंदी है, वे आगे बढऩे के लिए इंग्लिश पसंद करते हैं। सरकार भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाकर औपचारिकता पूरी करती है। जबकि इसे आगे बढ़ाने के लिए नवीनीकरण और सरलीकरण की आवश्यकता है। सच बात तो यह है कि हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। अपनी भाषा के प्रति भावनात्मक लगाव रखना होगा।
दिवाकर विद्यालंकार, पूर्व प्रधानाध्यक्ष, एमएलबी महाविद्यालय
संतोषजनक नहीं है वर्तमान में स्थिति
हिंदी की वर्तमान स्थिति संतोषजनक नहीं है, लेकिन हिंदी की अपनी एक प्रकृति है। वे किसी का सहारा नहीं लेती। वह स्वत: विकसित हुई है। उसने अभी तक जितनी भी यात्रा की है, उसमें हमेशा अकेले खड़ी रही है। हिंदी के अंदर की क्षमता आंतरिक है। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता प्राप्त होने वाली है, लेकिन उसके पहले देश को एकरूप होना होगा। इसके लिए धीरे-धीरे महौल बनेगा और हिंदी को सफलता मिलेगी। हिंदी को आगे बढ़ाने का तरीका यही है कि इसका अधिक से अधिक उपयोग करें। हिंदी में छप रही किताब और अखबार पढें। ये करेंगे तो अपनी मातृभाषा को शिखर तक पहुंचाने में हम कामयाब होंगे।
जगदीश तोमर, शिक्षाविद
युवाओं को हिंदी से जोडऩा होगा
हिंदी से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि हिंदी के अस्तित्व को बचाने के लिए हमें युवाओं को जोडऩा होगा। हिंदी को हर एक तक पहुंचाने के लिए नए प्रयोग करने होंगे। हालांकि शहर के कई साहित्यकार, कवि और शिक्षाविद् ने हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काम कर रहे हैं। वह शहर और बाहर कार्यशाला में पहुंचकर हिंदी को आगे बढ़ाने के लिए उपाय सुझाते हैं।
हिंदी के बिना कुछ भी संभव नहीं
वर्तमान स्थिति में हिंदी सशक्त है। बिना हिंदी के किसी भी पटल पर आप खरे नहीं उतर सकते। हिंदी के बिना कुछ भी संभव नहीं है। बड़ी से बड़ी पिक्चर भी इंग्लिश के बाद हिंदी में डब होती हैं, तब वे कमाई कर पाती हैं। आज कम्प्यूटर से लेकर तकनीकी पढ़ाई भी हिंदी में आ चुकी है। देश में 80 प्रतिशत लोग हिंदी के भरोसे हैं। आम बोलचाल की भाषा में भी 95 प्रतिशत हिंदी का ही उपयोग होता है। हिंदी को और आगे बढ़ाने के लिए रोजनमूलक हिंदी को छात्र-छात्राओं को अपनाना चाहिए। इससे उन्हें रोजगार भी मिल सकेगा।
डॉ. ज्योति उपाध्याय, शिक्षक, वीआरजी कॉलेज