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1924 में शुरू हुआ था तानसेन समारोह संगीत की दुनिया में जाना-माना तानसेन समारोह असल में उर्स के रूप में शुरू किया गया था। संस्कृति संचालनालय के अनुसार तय तिथि 1924 के वक्त इसे सिंधिया वंश के तत्कालीन महाराजा माधव राव सिंधिया ने शुरू कराया था। जिसका मकसद संगीत सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि देना था। इसलिए उन्हीं के नाम से उर्स शुरू हुआ। इसी परंपरा के तहत हर वर्ष ढोलीबुवा महाराज के द्वारा समाधि पर ताजपोशी के बाद ही समारोह शुरू होता है।
1924 में शुरू हुआ था तानसेन समारोह संगीत की दुनिया में जाना-माना तानसेन समारोह असल में उर्स के रूप में शुरू किया गया था। संस्कृति संचालनालय के अनुसार तय तिथि 1924 के वक्त इसे सिंधिया वंश के तत्कालीन महाराजा माधव राव सिंधिया ने शुरू कराया था। जिसका मकसद संगीत सम्राट तानसेन को श्रद्धांजलि देना था। इसलिए उन्हीं के नाम से उर्स शुरू हुआ। इसी परंपरा के तहत हर वर्ष ढोलीबुवा महाराज के द्वारा समाधि पर ताजपोशी के बाद ही समारोह शुरू होता है।
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ऐसे बदली समारोह की तस्वीर 1954 के बाद बदली समारोह की तस्वीर उर्स का सिलसिला 1950 के दशक तक अनवरत जारी रहा। इसके बाद 1954 के वक्त बॉर्डकास्टिंग मिनिस्टर रहे डॉ. केसकर ने इसे बड़ा रूप देने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कलाकारों को आमंत्रित किया और इसके दिन भी बढ़ाए।
ऐसे बदली समारोह की तस्वीर 1954 के बाद बदली समारोह की तस्वीर उर्स का सिलसिला 1950 के दशक तक अनवरत जारी रहा। इसके बाद 1954 के वक्त बॉर्डकास्टिंग मिनिस्टर रहे डॉ. केसकर ने इसे बड़ा रूप देने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कलाकारों को आमंत्रित किया और इसके दिन भी बढ़ाए।
उसी वक्त प्रदेश सरकार गठित हुई और उस्ताद अलाउद्दीन खां अकादमी का जन्म हुआ। जो बाद में समारोह का कार्यभार देखने लगी। यही वह समय था जब बड़े-बड़े कलाकार इस समारोह से जुडऩा शुरू हुए।
पहले तवायफें देती थी प्रस्तुति तवायफें देती थीं प्रस्तुति जब यह समारोह शुरू हुआ था तब यह एक दिन का होता था। जिसमें सभी कलाकार अपनी इच्छा से हिस्सा लेने जाया करते थे। उर्स शुरू होने के बाद से लंबे वक्त तक यहां तवायफें अपनी प्रस्तुति देने पहुंचती थीं। जहां वे शास्त्रीय संगीत और गजलें सुनातीं थीं।