सड़क पर झलकाए जाम: होली के त्यौहार पर सड़कों पर कई लोग जाम छलकाते मिले। प्रमुख चौराहों से लेकर पार्को में शराब पीने वालों ने अपना डेरा जमाया हुआ था।
शहर के कवियों की होली पर लिखीं रचनाऐं
आश्वासनों की पिचकारी में,
नए-नए टैक्सों, जीएसटी, महंगाई,
भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, हिंसा,
भ्रष्टाचार और भयानक घोटालों के अनेक
रंग भरकर सरकार जनता के
साथ खुलेआम होली खेल रही है।
जनता अजंता बनकर
आधार के साथ इसको
होली का मज़ाक समझकर
आराम से झेल रही है।
कुछ सिरफि रे नेतागण
भंग का अंटा लगाकर
एक दूसरे पर गालियों का
गुलाल फेंक रहे हैं।
जिन्हें कुर्सियां नहीं मिलीं,
वे गधे के स्वर में रेंक रहे हैं।
जिन्हें अधिक भंग या दारू
चढ़ गई है वे एक दूसरे पर
गटर का जल डाल रहे हैं।
जिनके जीवन रंगहीन हो गए हैं
वे एक दूसरे पर कीचड़
उछाल रहे हैं।
सदनों में
वास्तविक ‘मूर्ख सम्मेलन’ हो रहे हैं।
पढ़े लिखे बुद्धिजीवी आत्महत्याओं के लिए खेतों में
धतूरा बो रहे हैं।
हर तरफ नारों की फ सल
लहलहा रही है।
मेरे देश की दिशाहीन पीढ़ी
इक्कीसवीं सदी में जा रही है।
साजन ग्वालियरी, कवि
दिल से दिल मिल जाए
अबकी बार होली मेंगुले-मोहब्बत खिल जाए
त्योहार होली में।
महुए का पउवा चढ़ जाए
भांग की गोली में
बैठे-ठाले घूम के आएं
उडऩ-खटोली में।
गुड़-मिसरी सी घुल जाए
व्यवहार की बोली में
मुन-मुटाव सब धुल जाए
इस हंसी-ठिठोली में।
रंग-अबीर की मस्ती धार
रांझा टोली में
कोई हीर का पता बताए
है किस खोली में?
खुशियों के पलाश हैं फूले
चूनर-चोली में
कचनारों की छटा दिखे
अपने हमजोली में।
इन्द्रधनुष के रंग समार
प्रीत की झोली में
ले जाना गोरी को साजन
चांद की डोली में।
मीठा-खारा स्वाद मिले
घी,पूरणपोली में
कड़वाहट मिट जाए…
अबकी बार होली में।