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अच्छी संगत से होती आध्यामिक गुणों की वृद्धि

locationग्वालियरPublished: Nov 22, 2019 12:56:41 pm

मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला ने ग्रथ वचन में देते हुए कही

अच्छी संगत से होती आध्यामिक गुणों की वृद्धि

अच्छी संगत से होती आध्यामिक गुणों की वृद्धि

ग्वालियर. मनुष्य के जीवन में संगत का बहुत बड़ा असर पड़ता है। दर्शन के लिए माया व अभिमान का त्याग अति आवश्यक है। इसलिए भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि कोई व्यक्ति जन्म से अच्छा या बुरा नहीं होता। वह तो अच्छी या बुरी संगत पर निर्भर करता है। स्वर्ण की संगत करने से कांच भी रतन की सेवा प्राप्त करता है। गुणी व्यक्ति की संगत से ध्यान ठीक उसी प्रकार सुसंगत से विवेक और विचारों में वृद्धि होती है।
यह बात मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने आज गुरुवार की नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला ने ग्रथ वचन में देते हुए कही। मुनिश्री ने कहा कि आजकल जो लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं उनका समाधान महापुरुषों की वाणी से हो सकता है, क्योंकि परमात्मा किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे में कैद नहीं है, बल्कि वह तो हमारे अंदर बैठा है। वह न तो किसी की बापौती है और न ही ठेकेदारी। उसके नाम पर लड़ने वाले अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कस्तूरी नामक सुगंधित पदार्थ हिरण की नाभि में होता है, लेकिन वह उससे अनजान बना हुआ है। इसी प्रकार हमारी अंतर्रात्मा में परमात्मा का विराट रूप समाया हुआ है। उसे जगाने की बजाय उसको पाने के लिए जिंदगी भर मनुष्य भटकता रहता है और यही उसकी अज्ञानता है। परमात्मा को पाने के लिए अनंत काल तक इंसान बाहर भटकता रहेगा और समय, शक्ति और पैसा भी लगा देगा, फिर भी प्राप्त नहीं कर पाएगा। जिस प्रकार पत्थर के आवरण हटा लेते हैं, तो वह मूर्ति बन जाती है, उसी प्रकार लोग कर्मों के आवरण को ज्ञान और साधना के माध्यम से हटाने पर हमारी आत्मा ही परमात्मा के रूप में परिवर्तित हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें परमात्मा को खोजना नहीं, बल्कि असम्यक पुरुषार्थ के आधार पर आंतरिक शक्ति को जगाना है। सभी महापुरुषों ने अपनी संपूर्ण ऊर्जा अंतर्मुखी बनने में लगाई है और हम बाहरमुखी बनकर विषय, वासना और इंद्रियों के गुलाम बनकर अपने लक्ष्य की पूर्ति कदापि नहीं कर सकते हैं, जो अपनी आत्मा को नहीं समझ पाता है वह परमात्मा को क्या समझेगा। प्रत्येक वाणी में जब तक परमात्मा का स्वरूप नजर नहीं आएगा, तब तक सारी धार्मिक क्रियाएं निरर्थक है और यह कर्म बंधन का कारण बनेंगे और हम एकदूसरे से लड़ते रहेंगे। इसलिए जरूरी है कि आत्मा का साक्षात्कार करो सभी एक समान नजर आएंगे।
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