जलवायु परिवर्तन सहन करने वाले पौधों का संरक्षण जरुरी
ग्वालियरPublished: Mar 06, 2020 12:23:39 am
जीवाजी यूनिवर्सिटी में मॉडर्न ट्रेंड्स इन इथनोबोटनीकल रिसर्च विषय पर दो दिवसीय नेशनल सेमिनार ।
जलवायु परिवर्तन सहन करने वाले पौधा का संरक्षण जरुरी
ग्वालियर. जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ पौधों की कई प्रजातियां भी समाप्त होने लगती हैं। आगामी 2050 के लिए बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन और लोगों को पोषण आहार मुहैया कराना ये तीन मुख्य चुनौतियां सामने खड़ी हैं। ऐसे में हमें उन पौधों पर काम करना होगा, जो लगातार हो रहे जलवायु परिवर्तन को सहन कर सकें। उन पौधों के संरक्षण की भी जरूरत है। वर्तमान में फूड सिक्योरिटी के साथ-साथ न्यूट्रिशन सिक्योरिटी की भी जरूरत है। इसका मतलब है कि ऐसे पौधों का भी संरक्षण करना होगा, जिनसे बेहतर न्यूट्रिशन मिलता है। यह बात इंडियन ग्रासलैंड एंड फॉडर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. विजय कुमार यादव ने कही। वह जीवाजी यूनिवर्सिटी में मॉडर्न ट्रेंड्स इन इथनोबोटनीकल रिसर्च विषय पर दो दिवसीय नेशनल सेमिनार के शुभारंभ अवसर पर बोल रहे थे। इस दौरान सोसायटी ऑफ इथनोबॉटनीकल रिसर्च द्वारा इस क्षेत्र में कार्य करने वाले देशभर के विद्वानों को सम्मानित भी किया गया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि एनबीआरआई लखनऊ के एमेरिटस साइंटिस्ट डॉ. डीके उप्रेती रहे।
प्राचीन ज्ञान का व्यवसायीकरण जरूरी
एनबीआरआई लखनऊ से एके गोयल ने कहा कि कई जनजातियां पौधों से कई बीमारियों का इलाज करती हैं, लेकिन उनका डॉक्यूमेंटेशन न होने से ऐसी पद्धतियां विलुप्त होती जा रही हैं। इस तरह के प्राचीन ज्ञान का व्यवसायीकरण जरूरी है। इससे कई तरह के फायदे होंगे। लखनऊ के डॉ. डीके उप्रेती ने बताया कि को-ऑर्डिनेशन और को-ऑपरेशन की जरूरत है, जिसमें इथनोबॉटनिस्ट का कैमिस्ट सहित अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर बेहतर तरीके से काम कर सकें।
इनका हुआ सम्मान
हर्षबर्गर मैडल- डॉ. भास्कर पंजानी
डॉ. एसके जैन मैडल- डॉ. सुधांषु कुमार
डॉ. बीएन मेहरोत्रा मैडल- डॉ. के राधाकृष्णन
डॉ. डीसी पाल मैडल- डॉ. प्रदीप एन. सौदागर
इथनोबॉटनी में बेस्ट पीएचडी थीसिस- डॉ. संजय वि_लराव सतपुत्र