जैसे ही सुबह शिविर प्रारम्भ हुआ वैसे ही ग्रामीणों में अवार्ड राशि को लेकर दो मत हो गए। कुछ लोग अवार्ड राशि लेने के हक में थे तो कुछ लोग पूरा अवार्ड एक साथ लेने की मांग करने लगे एवं अवार्ड ले रहे लोगों को शिविर से बाहर करने लगे। इसको लेकर सेवा केन्द्र के कक्ष में ही दोनों पक्ष आपस में उलझ गए। बाद में सभी ने एकजूट होकर उपखण्ड अधिकारी के पास पहुंचे एवं मुआवजे संबंधित को और अधिक स्पष्ट करने को कहा। इस पर कुछ राजी हो गए तो कुछ नाराज होकर घर चले गए।
परमाणु बिजलीघर की जद में आने वाले रेल गांव के विस्थापितों के लिए नापला में शिविर का आयोजन किया गया था। शिविर के दौरान पूरे दिन गहमागहमी बनी रही तथा सभी के चेहरे पर मिले-जुले भाव नजर आ रहे थे। शिविर में दो विस्थापितों को तो एक और चार करोड़ तक का मुआवजा दिया जाना है जिसमें से एक करोड़ का मुआवजा राशि मंगलवार को दी गई।
शिविर में एेसे लोग भी पहुंचे जिन्होंने यह शिकायत की कि उनके मकानों का अवार्ड गलत जारी किया है। रेल गांव के बबल ने बताया कि उसका बड़ा पक्का मकान है जिसकी लागत कीमत करीब 10 लाख रुपए होती है, लेकिन उसको मुआवजा महज डेढ़ लाख रुपए ही दिया जा रहा है। इसी तरह उसके भाई को तो मुआवजा इससे भी कम दिया जा रहा है। उसके भाई को महज 88 हजार रुपए का ही मुआवजा बना है।