जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ स्वामी की मोक्ष स्थली कैलाश पर्वत मान सरोवर है । जैन शास्त्रों में इसे अष्टापद पर्वत भी कहा जाता है। चूंकि इस पर्वत से ही भगवान आदिनाथ को मोक्ष प्राप्त हुआ था, इस कारण यह पर्वत जैन अनुयायियों के लिए पूज्य तीर्थ माना जाता है, लेकिन वर्तमान में यह तीर्थ चीन की सीमा में और कठिन चढ़ाई पर है, इस कारण यहां पहुंचना हर किसी के लिए आसान नहीं है। इसी को ध्यान में रखते हुए ग्वालियर के नजदीक बरई में जिनेश्वर धाम तीर्थ की तलहटी में इस तीर्थ को छोटे रूप में बनाया गया है। जिसका फिनिशिंग वर्क चल रहा है जो अगले तीन माह में पूरा हो जाएगा।
पहाड़ी पर है 700 वर्ष पुराना मंदिर
इस तीर्थ के उपर पहाड़ी पर एक प्राचीन मंदिर है जहां 13वीं शताब्दी की लगभग 700 वर्ष पुरानी 17 फीट की चन्द्राप्रभू भगवान की 17 फीट की मुनिसुव्रतनाथ भगवान एवं 21 फीट की नेमीनाथ भगवान की प्रतिमाएं विराजित हैं। 72 मंदिरों के साथ कैलाश पर्वत 3 माह में बनकर तैयार हो जाएगा प्रदेश का यह पहला तीर्थ होगा जहां इतनी विशाल प्रतिमा के साथ कैलाश पर्वत होगा।
जमीन से 41 फीट उंची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा
जिनेश्वर धाम तीर्थ के अध्यक्ष पं अजीत कुमार शात्री एवं जैन समाज के प्रवक्ता ललित जैन ने बताया कि बरई स्थित इस तीर्थ पर 15 फीट के प्लेटफार्म पर 5 फीट का 5 क्विंटल वजनी कमल रखा गया उसके उपर 21 फीट ऊंची भगवान आदिनाथ की प्रतिमा खड़ी की गई है। इस तरह यह प्रतिमा जमीन से 41 फीट उंची है। जो आगरा मुंबई हाईवे से भी दिखाई देती है।
72 मंदिरों के साथ बनाया गया है कैलाश पर्वत
भगवान की प्रतिमा के नीचे गोल पत्थर एवं मिट्टी का पर्वत बनाया गया है जिसमें तीन फीट उंचे 72 मंदिर बनाए गए हैं, सभी मंदिरों में भगवान की प्रतिमा विराजित की जाएगी। जिनके दर्शन करने से कैलाश पर्वत पर भव्य जिनालय की कल्पना की जा सकती है।