उन्होंने बारिश के पानी पर अध्ययन करते हुए पत्रिका को बताया कि वर्ष २०११ की जनगणना के मुताबिक शहर में कुल आवासों की संख्या २ लाख २ हजार थी। वर्तमान में जाोकि २ लाख २५ हजार के आस-पास हो गई। हर एक छत का औसत एरिया करीब ८०० वर्ग फीट है जोकि करीब १८ करोड वर्गफीट के आस-पास अनुमानित है। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर में अब तक ९१४ एमएम बारिश हो चुकी है जोकि सीधे तौर पर ३६ इंच है। एक हजार स्केयर फीट एरिया में एक इंच बारिश होती तो पानी की मात्र २४६० लीटर गिरता है। इसी तरह एक इंच वर्ग फीट में २.४६ अर्थात ढाई लीटर बारिश का पानी आता है। शहर में होने वाली बारिश में कुल आवासों पर एक वर्ग फीट की छत पर करीब ८८.५६ लीटर पानी गिरा है। इस तरह १८ करोड़ वर्ग फीट कबर छत पर १५ अरब ९४ करोड़ ८ लाख लीटर पानी गिरा है। यह पानी छत से जमीन में होकर नालियों से नदियों तक पहुंचने में स्टैंडर्ड माप के अनुसार १५-२० फीसदी ही रिचार्ज करता है। वही भी नदियों के किनारे वाली जमीन पर ग्वालियर की जमीन पत्थरीली है। इसमें बारिश का पानी बमुश्किल से ५ फीसदी वाटर स्तर बढ़ा सकता है। इस तरह अब तक ३१ करोड़ ८८ लाख १६ हजार लीटर पानी भू-जलस्तर तक पहुंच सका है। शहर में वाटर हार्वेस्टिंग पर लोगों को फोकस न ही होने से शहर वासियों ने जलधन को सीधे तौर पर बहा दिया है।
शहर में होने वाली बारिश का पानी का यदि संचयन किया जा सकता था। इसका शुद्धिकरण करके जमीन में उतारा जा सकता था तो छतों पर गिरने वाला बारिश का पानी २६६ दिन की जरूरत पूर्ति कर सकता था। इतना पानी छतों पर आकर सीधा नालियों के माध्यम से बह गया है। इस पानी का संचयन न करने से एक बार फिर से शहर वासियों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि न्यायालय ने सरकारी और गैर सरकारी व आवासीय क्षेत्र में वाटर हार्वेस्टिंग कराए जाने के निर्देश दिए है। इसके बाद भी निगम अफसर लापरवाही बरत रहे हैं।
इधर शहर में कुछ लोगों ने शैक्षणिक संस्थाओं में वाटर हार्वेस्टिंग कराई है। ऐसे लोगों ने बारिश का पानी का शुद्धिकरण करके सीधे बोरिंग से जोड़ा है। ऐसे शैक्षणिक परिसरों की सूखी हुई बोरिंग फिर से जिंदा हो चुकी है। शहर में एवीवीट्रपलआइटीएम , विवेकानंद नीडम, एमेटी यूनिवर्सिटी, देहली पब्लिक स्कूल में वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर अच्छा काम हुआ है। इन संस्थाओं के परिसरों में भू-जलस्तर में सुधार हुआ है।
पत्रिका टीम ने इधर स्वर्ण रेखा में होने वाले वाटर हार्वेस्टिंग को देखा। यहां निगम की ओर से व्यापक स्तर पर वाटर हार्वेस्टिंग कराई गई। जमीन में गड्ढे खोदकर पाइप लगाए गए है। जहां गड्ढे खोदे गए उन पर गंदगी और मलबा जम चुका है। इसी तरह शिवपुरी लिंक रोड पर लोक निर्माण विभाग द्वारा बारिश के दौरान सड़क में वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ा था। इसके लिए पाइप लाइनों को जोड़कर वाटर हार्वेस्टिंग के कुओं तक ले जाया गया था। यह वाटर हार्वेस्टिंग एक साल से डेढ साल पहले कराई गई थी। इस के भी सार्थक परिणाम नहीं आए। यह देखते हुए निगम अफसरों ने षडय़ंत्र पूर्वक अमृत योजना की पाइप लाइन की खुदाई कराते हुए वाटर हार्वेस्टिंग के पाइपों को उखड़वा दिया। जिससे जलस्तर सुधार को लेकर कोई दावा करता है तो अधिकारी अपना पक्ष मजबूती से रख सकेंगे।