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मकानों की छतों पर गिरा १५ अरब लीटर बारिश का पानी, फिर भी पांच फीसदी नहीं बढ़ा सके वाटर लेबल

locationग्वालियरPublished: Oct 03, 2019 11:27:23 pm

Submitted by:

Pawan Dixit

शहर में होने वाली बारिश का पानी दो फीसदी भी भूजलस्तर को नहीं बढ़ा सका है। शहर के दो लाख मकानों में यदि वाटर हार्वेस्टिंग हो जाती तो साल के २६६ दिन की पेयजल आपूर्ति का पानी जमीन में एकत्रित हो जाता।

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ग्वालियर। बारिश का पानी संचयन को लेकर शहर मे ंन नगर निगम प्रशासन जागृति है और ना ही आम नागरिक। गर्मी के दिनों में हर कालोनी-मोहल्ले में पेयजल संकट खड़ा होता है। तब लोग पानी को तरस है। इस सीजन में शहर में होने वाली बारिश का आंकड़ा ९१४ एमएम है। इस बारिश के आंकड़े पर शहर के विशेषज्ञों ने अध्ययन किया। इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक शहर के मकारों की छत पर १५ अरब, ९४ करोड ८ लाख लीटर पानी बारिश के माध्यम से आया। यह पानी का शत-प्रतिशत भाग बह गया। छतों से आने वाला पानी जमीन में ३१ करोड़ ८८ लाख १६ हजार लीटर ही जमीन के अंदर पहुंच सका है। बारिश के बाद भी शहर के भू-जलस्तर में पांच फीसदी सुधार नहीं हो सका।
यह अध्ययन भूजल पर कार्य करने वाले समाज सेवी पंकज तिवारी ने किया। यह अध्ययन की रिपोर्ट प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को भी भेजी है।
शहर में दो लाख घरों पर १८ करोड़ वर्ग फीट एरिया है कबर
उन्होंने बारिश के पानी पर अध्ययन करते हुए पत्रिका को बताया कि वर्ष २०११ की जनगणना के मुताबिक शहर में कुल आवासों की संख्या २ लाख २ हजार थी। वर्तमान में जाोकि २ लाख २५ हजार के आस-पास हो गई। हर एक छत का औसत एरिया करीब ८०० वर्ग फीट है जोकि करीब १८ करोड वर्गफीट के आस-पास अनुमानित है। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक शहर में अब तक ९१४ एमएम बारिश हो चुकी है जोकि सीधे तौर पर ३६ इंच है। एक हजार स्केयर फीट एरिया में एक इंच बारिश होती तो पानी की मात्र २४६० लीटर गिरता है। इसी तरह एक इंच वर्ग फीट में २.४६ अर्थात ढाई लीटर बारिश का पानी आता है। शहर में होने वाली बारिश में कुल आवासों पर एक वर्ग फीट की छत पर करीब ८८.५६ लीटर पानी गिरा है। इस तरह १८ करोड़ वर्ग फीट कबर छत पर १५ अरब ९४ करोड़ ८ लाख लीटर पानी गिरा है। यह पानी छत से जमीन में होकर नालियों से नदियों तक पहुंचने में स्टैंडर्ड माप के अनुसार १५-२० फीसदी ही रिचार्ज करता है। वही भी नदियों के किनारे वाली जमीन पर ग्वालियर की जमीन पत्थरीली है। इसमें बारिश का पानी बमुश्किल से ५ फीसदी वाटर स्तर बढ़ा सकता है। इस तरह अब तक ३१ करोड़ ८८ लाख १६ हजार लीटर पानी भू-जलस्तर तक पहुंच सका है। शहर में वाटर हार्वेस्टिंग पर लोगों को फोकस न ही होने से शहर वासियों ने जलधन को सीधे तौर पर बहा दिया है।
२६६ दिन का पानी बहाया
शहर में होने वाली बारिश का पानी का यदि संचयन किया जा सकता था। इसका शुद्धिकरण करके जमीन में उतारा जा सकता था तो छतों पर गिरने वाला बारिश का पानी २६६ दिन की जरूरत पूर्ति कर सकता था। इतना पानी छतों पर आकर सीधा नालियों के माध्यम से बह गया है। इस पानी का संचयन न करने से एक बार फिर से शहर वासियों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि न्यायालय ने सरकारी और गैर सरकारी व आवासीय क्षेत्र में वाटर हार्वेस्टिंग कराए जाने के निर्देश दिए है। इसके बाद भी निगम अफसर लापरवाही बरत रहे हैं।
वाटर हार्वेस्टिंग करके बढ़ाया जलस्तर
इधर शहर में कुछ लोगों ने शैक्षणिक संस्थाओं में वाटर हार्वेस्टिंग कराई है। ऐसे लोगों ने बारिश का पानी का शुद्धिकरण करके सीधे बोरिंग से जोड़ा है। ऐसे शैक्षणिक परिसरों की सूखी हुई बोरिंग फिर से जिंदा हो चुकी है। शहर में एवीवीट्रपलआइटीएम , विवेकानंद नीडम, एमेटी यूनिवर्सिटी, देहली पब्लिक स्कूल में वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर अच्छा काम हुआ है। इन संस्थाओं के परिसरों में भू-जलस्तर में सुधार हुआ है।
खर्च के बाद भी नहीं आए सार्थक परिणाम
पत्रिका टीम ने इधर स्वर्ण रेखा में होने वाले वाटर हार्वेस्टिंग को देखा। यहां निगम की ओर से व्यापक स्तर पर वाटर हार्वेस्टिंग कराई गई। जमीन में गड्ढे खोदकर पाइप लगाए गए है। जहां गड्ढे खोदे गए उन पर गंदगी और मलबा जम चुका है। इसी तरह शिवपुरी लिंक रोड पर लोक निर्माण विभाग द्वारा बारिश के दौरान सड़क में वाटर हार्वेस्टिंग से जोड़ा था। इसके लिए पाइप लाइनों को जोड़कर वाटर हार्वेस्टिंग के कुओं तक ले जाया गया था। यह वाटर हार्वेस्टिंग एक साल से डेढ साल पहले कराई गई थी। इस के भी सार्थक परिणाम नहीं आए। यह देखते हुए निगम अफसरों ने षडय़ंत्र पूर्वक अमृत योजना की पाइप लाइन की खुदाई कराते हुए वाटर हार्वेस्टिंग के पाइपों को उखड़वा दिया। जिससे जलस्तर सुधार को लेकर कोई दावा करता है तो अधिकारी अपना पक्ष मजबूती से रख सकेंगे।
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