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ग्वालियर

सहस्त्र बाहु मंदिर पर गिरी बिजली, टूट गई प्राचीन धरोहर, जिम्मेदारों को मालूम तक नहीं

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5 years ago
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क्षतिग्रस्त सीढ़ी

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1093 ईस्वी में बना था सास बहू का मंदिर

ग्वालियर किले के पूर्व के कोने में दो मंदिरों का समूह सास-बहू के मंदिर के रूप में लोकप्रिय है। शाब्दिक अर्थ भी सास और बहू के मंदिर के रूप में सामान्य रूप से बड़ा व छोटा मंदिर से लिया जाता है। मंदिर के नाम की उत्पत्ति सहस्त्र बाहू नाम से संभावित है जिसका अर्थ हजार भुजाओं से है। बाद में यह सास-बहू के नाम से जाना जाने लगा। पुरातात्विक वैभव एवं गौरवपूर्ण परंपराओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कच्छपघात शासकों द्वारा कराया गया था। मंदिरों का निर्माण राजा रत्नपाल द्वारा प्रारंभ किया गया था जो राजा महिपाल के शासन काल 1093 ईस्वी मेें पूर्ण हुआ था। पूर्ण रूप से विकसित मंदिर का निर्माण पंक्तिबद्ध रूप से उत्तर-दक्षिण दिशा में हुआ, जिसमें गर्भगृह, अंतराल, महामंडप दक्षिण से उत्तर की ओर है। इसमें नक्काशीदार स्तंभ तथा केंद्रीय सभागार की छत तीन ओर से ड्योढ़ी द्वारा घिरे हुए हैं तथा बाहर की दीवारें ज्यामितीय, पुष्पाकृतियों, पशु-पक्षियों, गज, नर्तक, संगीतकार और कृष्ण लीला के सुंदर दृश्यों से परिपूर्ण है। छोटे मंदिर की बाहरी दीवारें भी इसी प्रकार चित्रित हैं। इस मंदिर में एक लघु केंद्रीय सभागार व प्रकोष्ठ भी है।

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पास ही पड़ा है गुंबद
सास-बहू के छोटे मंदिर के ऊपर लगा गुंबद यहां पास में ही पड़ा है। अभी तक किसी ने इसे उठाया भी नहीं है। कहने को ये पूरा का पूरा मंदिर ही धरोहर है और इसका ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है, लेकिन फिर भी इसकी अनदेखी की जा रही है।

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