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क्रोध व बैर के शमन के लिए भगवान महावीर ने उपवास और क्षमा शब्द दिया है

locationग्वालियरPublished: Nov 11, 2019 01:41:42 am

मुनिश्री के सानिध्य में सिद्धचक्र विधान में पंचपरमेष्ठी को 516 महाअर्घ्य समर्पित जयकार गूंजी

क्रोध व बैर के शमन के लिए भगवान महावीर ने उपवास और क्षमा शब्द दिया है

क्रोध व बैर के शमन के लिए भगवान महावीर ने उपवास और क्षमा शब्द दिया है

ग्वालियर. उत्तेजक तत्व है। जो मनुष्य को उग्र बनाता है और बैर की नींव डालता है। क्रोध क्षणिक आता है और चला जाता है। किन्तु अपना प्रभाव और भयानक तत्व छोड़ जाता है। जो अनेक जन्मों तक आत्मा पर छाया रहता है। दुश्मनी का पाप जन्मों-जन्मों तक साथ रहता है। क्रोध व बैर के शमन के लिए भगवान महावीर ने उपवास और क्षमा शब्द दिया है। क्रोध के उफान को निरस्त करना उपशम है। क्रोध मानव का मूल स्वभाव नहीं है। मनुष्य मूल प्रकृति शांत भाव से रहने की है। यह बात उपग्वालियर लोहमंडी जैन मदिंर मंे अयोजित सिद्धचक्र महामंडल विधान के आज सातवें दिन रविवार को धर्मसभा में मुनिश्री संस्कार सागर महाराज ने कही। शाम को भगवान का जन्मोत्सव मनाया गया
मुनिश्री ने कहा कि असत्य हमेशा मरता है। सत्य हमेशा जीवित रहता है। अपमान होने पर हम कितने दुखी होते हैं, इसलिए हम भी किसी को अपमानित नहीं करें। क्रोध के स्थान पर करुणा हो तो दुश्मन भी मित्र बन जाता है। अभिमान हमें झुकने नहीं देता है, अहंकार छोड़े बिना गुरु परमात्मा का भी नहीं हो सकता है। व्यक्ति को बदलने का अवसर मिलना चाहिए। कर्म के भ्रम को कोई ना जानता है। बैर को समाप्त करना चाहिए। कर्म का लेख टलता नहीं है। पाप करें हम दोषी परमात्मा गुरु को नहीं ठहराएं। मनुष्य शांत प्रकृति से अपने क्रोध को समाप्त कर सकता है। हम सदैव दुश्मन को क्षमा करें।

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