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महाशिवरात्रि… इस शिव मंदिर की है अजब कहानी, जानें इसका इतिहास

locationग्वालियरPublished: Feb 19, 2020 07:21:26 pm

मंदिर के इतिहास के बारे में महंत अनिरुद्धवन बताते हैं कि यह मंदिर पहले नाग वंशीय शासकों द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर नरबलि के लिए प्रसिद्ध था, जिसे मुगल शासकों ने नष्ट कर दिया था। बाद में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव ने वर्ष 1605 से 1627 के बीच एक रात में मंदिर का निर्माण कराया था।

shiv mandir

महाशिवरात्रि… इस शिव मंदिर की है अजब कहानी, जानें इसका इतिहास

ग्वालियर. मंदिर के इतिहास के बारे में महंत अनिरुद्धवन बताते हैं कि यह मंदिर पहले नाग वंशीय शासकों द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर नरबलि के लिए प्रसिद्ध था, जिसे मुगल शासकों ने नष्ट कर दिया था। बाद में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव ने वर्ष 1605 से 1627 के बीच एक रात में मंदिर का निर्माण कराया था। उसके बाद में वर्ष 1936 में ग्वालियर नरेश जीवाजीराव सिंधिया के राजकाल में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था।
10 साल से चल रहा ऊं नम: शिवाय जाप
महंत ने बताया कि धूमेश्वर धाम में पिछले 10 साल से 24 घंटे ऊं नम: शिवाय जाप अनवरत रूप से जारी है। जाप में बारी-बारी से गांव भाग लेते हैं। जिसके लिए गांव का नंबर लगता है। वैसे तो प्रति सोमवार यहां 500 श्रद्धालु दर्शन को पहुंचते हैं पर सावन के सोमवार को यह संख्या 1000 को पार कर जाती है।
शिव भगवान की पिंडी निकली है नदी से
बताया जाता है कि मंदिर में भगवान शिव की जो पिंडी है वह नदी से निकली हुई है, जिसकी गहराई अभी तक कोई नहीं माप पाया है, वहीं मंदिर के आगे का भाग राजपूताना शैली में नजर आता है। साथ ही मंदिर के जिस हिस्से में भगवान शिव की पिंडी निकली है उसके ठीक पीछे की दिशा से सूर्य उदय होता है और सूर्य की पहली किरण भी शिवलिंग पर पड़ती है।
मान्यता है शिवलिंग पर सुबह चढ़ा मिलता है जल
मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व के दौरान विशाल मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव के दर्शन करने मात्र से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। महंत और स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर में स्थित भगवान शिव की पिंडी पर रोजाना ही सुबह जल चढ़ा हुआ मिलता है, जिसके बारे में अभी तक पता नहीं चल सका है कि आखिर शिवलिंग पर जल कौन चढ़ाता है? इसके साथ ही पवाया गांव, जहां मंदिर है, यह गांव साहित्य के गौरव महाकवि भवभूति की कर्मस्थली रही है और यहां अभी भी भवभूति के समय का नाट्य रंगमंच बना हुआ है।

सूरज की पहली किरण भी पड़ती है शिवलिंग पर
बताया जाता है कि मंदिर में भगवान शिव की जो पिंडी है वह नदी से निकली हुई है, जिसकी गहराई अभी तक कोई नहीं माप पाया है, वहीं मंदिर के आगे का भाग राजपूताना शैली में नजर आता है। साथ ही मंदिर के जिस हिस्से में भगवान शिव की पिंडी निकली है उसके ठीक पीछे की दिशा से सूर्य उदय होता है और सूर्य की पहली किरण भी शिवलिंग पर पड़ती है।
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