ग्वालियर

Navratre 2019: मांढऱे वाली माता का मंदिर बनावाने का सौभाग्य मिला था सिंधिया खानदान को, सपने मेंं दिया था आदेश

mandre wali mata mandir gwalior: कंपू क्षेत्र के कैंसर पहाड़ी पर बना यह भव्य मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से तो खास है ही, इस मंदिर में विराजमान अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली की प्रतिमा अद्भुत और दिव्य है।

ग्वालियरSep 28, 2019 / 07:58 pm

Gaurav Sen

ग्वालियर. शरदीय नवरात्रे आज से यानी 29 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। नवरात्रों का माता के भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। रविवार से माता विराजमान हो रही हैं। जिसको लेकर पूरे देश में तैयारियों का दौर चल रहा है। माता की झांकियों के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगाए जा रहेहैं। जिसमें जगत जननी की मनमोहक मूर्तियां स्थापित की जाएंगी। इनके अलावा देवी के मंदिरों में विशेष तैयारियां की जा रही हैं। ग्वालियर शहर में देवी के कई सारे दशकों पुराने मंदिर हैं जिसमें तैयारियां अपने चरम पर हैं। पत्रिका द्वारा आपको शहर के मंदिरों की विशेष मान्यता व उनके इतिहास के बारे बताया जाएगा। कहां और कैसे मां के मंदिरों की स्थापना हुई।

नवरात्रि ग्वालियर व ग्वालियर राज घराने के लिए कुछ खास है। शहर में ऐसे कई देवी मंदिर हैं, जहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। लेकिन, इसमें भी एक खास देवी मंदिर है मांढऱे वाली माता मंदिर। कंपू क्षेत्र के कैंसर पहाड़ी पर बना यह भव्य मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से तो खास है ही, इस मंदिर में विराजमान अष्टभुजा वाली महिषासुर मर्दिनी मां महाकाली की प्रतिमा अद्भुत और दिव्य है।

135 साल पहले जयाजी राव सिंधिया ने कराई थी स्थापना

सिंधिया परिवार से जुड़े लोग बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण महाराजा जयाजीराव सिंधिया की फौज के कर्नल आनंदराव मांढरे के कहने पर तत्कालीन सिंधिया शासक ने कराया था। बताते है कि कर्नल मंाढऱे को सपना आया, जिसमें मां काली ने उसे कैंसर पहाड़ी पर मां की मूर्ति होने का आभास कराया। बताया जाता है कि जब उस स्थान पर खोज की गई तो मां की मूर्ति मिली। उसी स्थान पर मां काली का भव्य मंदिर का निर्माण सिंधिया शासक द्वारा करवाया गया। आज भी इस मंदिर की देखरेख और पूजा-पाठ का दायित्व मांढरे परिवार निभा रहा है।

अपने महल से मां के दर्शन करते थे सिंधिया

शासक मांढऱे की माता सिंधिया राजपरिवार की कुल देवी है और इसी वजह से इस मंदिर का महत्व अधिक है। मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि माता की मूर्ति के दर्शन सीधे जयविलास पैलेस से होते थे। मंदिर व जयविलास पैलेस का मुख आमने-सामने है। कहा जाता है कि सिंधिया शासक पैलेस से एक बड़ी दूरबीन के माध्यम से माता के प्रतिदिन दर्शन किया करते थे। 13 बीघा जमीन पर बना है मंदिर मांढऱे वाली माता मंदिर में करीब 13 बीघा में फैला हुआ है। यह भूमि सिंधिया राजवंश ने दान में दी थी।

इसकी देखरेख व जरूरत को आज भी सिंधिया परिवार करता है। यहां दूर-दराज से भी लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। हर कष्ट हर लेती है माता मांढऱे वाली माता के इर्द-गिर्द अनेक अस्पताल हैं, जहां आज भी उपचार के लिए आने वाले मरीजों के परिजन यहां मन्नत मांगते हैं और कोई घंटियां चढ़ाता है, तो कोई धागा बांधकर मन्नत मांगता है और जब मन्नत पूरी होती है तो मत्था टेकने भी आता है।

दशहरे पर होता है शमी पूजन

दशहरे पर होता है शमी का पूजन मंदिर के व्यवस्थापक मांढरे परिवार के अनुसार इस मंदिर पर लगे शमी के वृक्ष का प्राचीन काल से सिंधिया राजवंश दशहरे के दिन पूजन किया करता है। आज भी पारंपरिक परिधान धारण कर सिंधिया राजवंश के प्रतिनिधि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे तथा व सरदारों के साथ यहां दशहरे पर मत्था टेकने और शमी का पूजन करने आते हैं।

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