लेकिन चिट्ठी पहुंचने से पहले तिरंगे में लिपटा नरेंद्र सिंह राणा का शव पहुंचा था। घटना के बीस साल बीत गए हैं मगर उस पल को याद कर उनकी पत्नी आज भी फफक पड़ती है। नरेंद्र सिंह राणा की पत्नी यशोदा ग्वालियर के मुरार उपनगर स्थित घोसीपुरा इलाके में रहती हैं। यहीं पर शहीद सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा का 12 दिंसबर 1955 को जन्म हुआ था। उनके तीन लड़के हैं तो दो अब बाहर रहते हैं और एक लड़का अपनी मां के साथ रहता है।
शहीद होने से आठ दिन पहले लिखी चिट्ठी
करगिल युद्ध में विजयी हासिल होने के बाद भी वहां गोलीबारी की घटनाएं होती थी। 6 अगस्त 1999 को दुश्मनों से लड़ते हुए सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा शहीद हो गए। घटना बीस साल पहले की है। उस वक्त मोबाइल और टेलिफोन का प्रचलन उतना नहीं था। ऐसे में परिवार तक अपनी संदेश पहुंचाने के लिए जवान चिट्ठी का ही सहारा लेते थे। शहीद सूबेदार नरेंद्र सिंह ने भी शहीद होने से करीब आठ दिन पहले अपने परिवार के लिए चिट्ठी लिखी थी। जिसमें बेटों और पत्नी के लिए संदेश था।
करगिल युद्ध में विजयी हासिल होने के बाद भी वहां गोलीबारी की घटनाएं होती थी। 6 अगस्त 1999 को दुश्मनों से लड़ते हुए सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा शहीद हो गए। घटना बीस साल पहले की है। उस वक्त मोबाइल और टेलिफोन का प्रचलन उतना नहीं था। ऐसे में परिवार तक अपनी संदेश पहुंचाने के लिए जवान चिट्ठी का ही सहारा लेते थे। शहीद सूबेदार नरेंद्र सिंह ने भी शहीद होने से करीब आठ दिन पहले अपने परिवार के लिए चिट्ठी लिखी थी। जिसमें बेटों और पत्नी के लिए संदेश था।
शहीद होने के दस दिन बाद पहुंची चिट्ठी
पत्नी यशोदा बताती हैं कि हमलोगों को जानकारी तो टीवी के जरिए ही मिलती थी। छह अगस्त को मुरार स्थित मिलट्री कैंप से आर्मी के जवानों ने घर आकर उनकी शहादत की खबर दी थी। उसके बाद तिरंगे से लिपटा हुआ उनका शव घर पहुंचा। उनकी लिखी हुई चिट्ठी दस दिन बाद घर पहुंची। जिसे यशोदा ने बीस साल से घर में संजोए रखा है। वहीं, सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा की तस्वीर को हर दिन वह भगवान की तरह पूजती हैं। पति की शहादत पर उन्हें गर्व है।
अपना ख्याल रखना, बच्चों को स्कूल भेजना
शहीद सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा की चिट्ठी परिवार को उनके शहीद होने के दस दिन बाद मिली। जिसमें उन्होंने पत्नी के लिए लिखा था कि अपना ख्याल रखना, बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजना। उनके खाने पीने का ख्याल भी रखना। वो चाहते थे कि बच्चे भी उनकी तरह फौज में ही भर्ती हो। इसलिए उन्होंने लिखा था कि तुम तीनों भाई फौज में भर्ती होने की तैयारी करते रहना।
मां के साथ रह रहे धीरेंद्र की उम्र उस वक्त आठ साल थी। वह पिता को याद करते हुए कहता है कि वह जब घर आते थे तो बच्चों को फौज में भर्ती होकर देश सेवा की प्रेरणा देते थे। साथ ही लोगों के लिए कश्मीरी सेब और अखरोट लाते थे। गांव आने के बाद उन्हें फौज में भर्ती होने के लिए प्रशिक्षण भी देते थे।
शुरू से फौज में होना चाहते थे भर्ती
शहीद सूबेदार नरेंद्र सिंह राणा शुरू से ही फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करना चाहते थे। घर के सामने मिलिट्री कैंप था इसलिए और प्रेरित होते थे। फिर उन्होंने तैयारी शुरू कर दी और 21 साल की उम्र में 12 जुलाई 1976 को फौज में भर्ती हो गए। अब उनकी याद में उनके नाम से शहर में करगिल शहीद नरेंद्र सिंह राणा द्वार भी बना हुआ है। साथ ही उनके बलिदान दिवस पर हर साल गांव में कार्यक्रम का भी आयोजन होता है।