प्रदेश के सरकारी व प्राईवेट कॉलेजों में चल रहे माइक्रोबायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री और कम्प्यूटर साइंस जैसे विषय दूसरे विषयों की फैकल्टी के भरोसे हैं। सरकारी कॉलेजों में तो आलम यह है कि जिन्हें इन विषयों को पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है उनका खुद इन विषयों से कोई नाता नहीं रहा। माइक्रोबायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री और कम्प्यूटर साइंस विषय प्रदेश के 282 कॉलेजों में पढ़ाए जा रहे हैं। इनमें से सरकारी कॉलेज 49 हैं। उच्चशिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो यह गड़बड़ी शासन स्तर से हुई है। विश्व विद्यालयों की बोर्ड ऑफ स्टडीज ने इन विषयों का सिलेबस तो बना लिया लेकिन इसके लिए शासन ने पद नहीं दिए।
जेयू सहित प्रदेश के सभी विवि में माइक्रोबायोलॉजी और बायो टेक्नोलॉजी विभागों की स्थापना के बाद बाद से अब तक 12 से 15 हजार छात्र पीजी कर निकल चुके हैं वहीं लगभग डेढ़ हजार छात्रों को पीएचडी अवॉर्ड की जा चुकी है। पद न होने के कारण इन विषयों के विद्यार्थियों को सरकारी कॉलेजों में बातौर रेगुलर नियुक्ति नहीं मिल पा रही है। वही राज्य सरकार इस ओर आंख बंद करके बैठी है।
उच्चशिक्षा विभाग के पूर्व आयुक्त आशीष उपाध्याय ने वर्ष 2007 में इस समस्या से निजात के लिए नई टेक्नीक अपनाई। उन्होंने इन्हें एलाइड सब्जेक्ट के रूप में रखा। यानि माइक्रोबायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री जैसे विषयों में पीजी करने वाले उम्मीदवारों ने अगर स्नातक स्तर पर मुख्य विषय जैसे बॉटनी और जूलॉजी की पढ़ाई की है तो उसे ग्रेजुएट लेवल पर पढ़ाने की मंजूरी दे दी। इस व्यवस्था से न केवल पढऩे वाले बल्कि पढ़ाने वाले भी परेशान हैं।
इनका कहना है
यह सही है कि माइक्रोबायोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री जैसे महत्वपूर्ण विषयों को पढ़ाने के लिए नियमित पद नहीं है। इस कोर्स की शुरुआत की शर्त के अनुसार हुई थी जिसके अनुसार कॉलेज सब्जेक्ट तो खोल लेंगे लेकिन पद की मांग नहीं करेंगे। इसी कारण नियमित नियुक्ति के पद नहीं हैं।
डॉ.बीपीएस जादौन, प्राचार्य, साइंस कॉलेज
योगेन्द्र पवैया, रिसर्च स्कॉलर, बायोटेक्नोलॉजी