scriptमिश्रित रणनीति से संभलेगी देश की अर्थव्यवस्था | Mixed strategy will sustain country's economy | Patrika News

मिश्रित रणनीति से संभलेगी देश की अर्थव्यवस्था

locationग्वालियरPublished: Jan 17, 2020 11:19:20 pm

Submitted by:

Harish kushwah

भारतीय अर्थव्यवस्था में जारी आर्थिक सुस्ती के पीछे मानवीय व्यवहार से जुड़े कारक हैं। बाजार में मांग की कमी के कारण यह सुस्ती उपजी है। उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय नहीं कर रहें है। जिससे यह स्थिति बनी है। इस स्थिति से उबरने के लिए मिश्रित राणनीति को अपनाना होगा।

मिश्रित रणनीति से संभलेगी देश की अर्थव्यवस्था

मिश्रित रणनीति से संभलेगी देश की अर्थव्यवस्था

ग्वालियर. भारतीय अर्थव्यवस्था में जारी आर्थिक सुस्ती के पीछे मानवीय व्यवहार से जुड़े कारक हैं। बाजार में मांग की कमी के कारण यह सुस्ती उपजी है। उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय नहीं कर रहें है। जिससे यह स्थिति बनी है। इस स्थिति से उबरने के लिए मिश्रित राणनीति को अपनाना होगा। आर्थिक विकास की योजनाओं में मानव के व्यावहारिक पक्ष को भी शामिल करना होगा। यह बात जीवाजी यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग के सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित प्रो. कन्हैया आहूजा कहीं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. कुशेन्द्र मिश्रा मौजूद रहे। सेमिनार की अध्यक्षता जीवाजी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने की।
प्रो. आहूजा ने कहा कि मानवीय भावनाओं और व्यवहार की आर्थिक विकास में भूमिका को समझ कर नीतियां बनाई जानी चाहिए। आजादी के बाद भारत का आर्थिक विकास संभव हुआ। भारत में आर्थिक प्रगति हुई, लेकिन उससे देशवासी संतुष्ट नहीं थे। लिहाजा 1991 में उदारीकरण-वैश्वीकरण की प्रक्रिया आरंभ हुई और आर्थिक वृद्धि दर 5 प्रतिशत से 8 प्रतिशत तक पहुंच गई। इस विकास को अनेक राष्ट्र ईर्ष्या की दृष्टि से देखते रहे। वर्तमान में उपभोक्तावाद बढ़ा है, बाजार का विस्तार हुआ है, परन्तु यह विकास हमें खुशियां देने में सक्षम नहीं है।
अपनाना होगा रचनात्मकता को

जेयू की कुलपति ने कहा कि अर्थव्यवस्था मानव व्यवहार पर निर्भर है और मानव व्यवहार बाजार पर निर्भर है, लेकिन हैप्पनीय फेक्टर बाजार पर निर्भर नहीं करता है। पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों का सूकून कम हुआ है। पिछली पीढ़ी को काफी सुकून था, लेकिन नई पीढ़ी सुकून से नहीं जीना चाहती। युवाओं को भागमभाग भरी जिंदगी छोड़कर रचनात्मकता को अपनाना चाहिए। आज मानव व्यवहार, बाजार और खुशहाली मे गिरावट के कारणों को समझने की आवश्यकता है।
नीतियों में कहीं न कहीं चूक

बड़े-बड़े स्कूल और अस्पताल खुल रहे हैं, लेकिन उनका लाभ लोग नहीं ले पा रह हैं। इससे लगता है नीतियों मे कहीं चूक है। अलग -अलग स्थानों पर लोगो की आवश्यकताएं भी अलग-अलग होती हैं। उनका भी ध्यान रखा जाना चाहिए। केवल आर्थिक बृद्वि से काम नही चलेगा, नए मापदण्ड विकसित करने होगें । पिछले पांच वर्षो में किसानों की आत्महत्या की मुख्य बजह फ सल नष्ट होना नहीं था, बल्कि बाजार की विफ लता थी। कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ. शांतिदेव सिसोदिया ने बताया कि सेमिनार में दूरदराज से आये प्रोफेसर और रिर्सच स्कॉलरों ने हिस्सेदारी की एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिन्हें खूब सराहा गया।
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