लोहे की कटोरियां बनाने वाली 50 वर्षीय भोला देवी को जैसे ही मतदाता पहचान पत्र को लेकर चर्चा की गई तो वैसे ही उनकी आंखों में चमक दिखाई दी। मुस्कराते हुए बोली सहाब-पहली बार मतदान करने का मौका मिल रहा है। इससे पहले किसी ने नहीं सुनी। हमें तो यह भी पता नहीं है कि वोट कैसे डाला जाता है और क्या होता है। पिछले तीन चार दिन से नेता लोग हमारे पास आने लगे है। पहले हसिया,खुरपियों में धार रखवाने के लिए किसान ही आते थे।
35 वर्षीय हरिकंठ कहते हैं कि एक साल पहले उन्हें पीएम आवास स्वीकृत हुआ था। तीन बार में आवास निर्माण कराने के लिए २ लाख रुपए मिल चुके हैं। चौथी किस्त के रूप में 50 हजार मिलने है। लेकिन आवास का निर्माण पूरा कराने के लिए करीब एक लाख की जरूरत है। रोजगार चल नहीं रहा। पैसा है नहीं,समझ में नहीं आता कि मकान पूरा कैसे होगा। हरिकंठ चार बच्चों और पत्नी सहित टपरे में रहते हैं। बरसात के मौसम में रात आंखों में ही कटती है।
60साल की आयु पूरी कर चुके राजेंद्रसिंह कहते हंै कि सरकार ने जहां पर पीएम आवास दिया है वहां जाने के लिए न तो रास्ता है और न ही पानी बिजली की व्यवस्था। वहां चले गए तो रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो जाएगा। पुलिस कर्मीरोज आते हैं और यह स्थान खाली करने के लिए कह जाते हैं। मकान पूरा कराने के लिए पैसा है नहीं,अब हमारे सामने संकट पैदा हो गया है। सरकार को हमारी समस्या समझनी चाहिए।
40 वर्षीय रेखा देवी कुछ जागरूक है। समस्याओं की बात छेड़ते ही बोली-सहाब हमारी बस्ती में आधा सैकड़ा से अधिक ६ से १६ साल तक के बच्चे हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश स्कूल नहीं जा रहे हैं। आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। प्राइवेट स्कूल की फीस इतनी महंगी है कि गरीबो की सामर्थ ही नहीं है। बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। जिस राह से हम गुजर चुके हंै उससे हमारे बच्चों को न गुजरना पड़े ये हमारी चिंता है।