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देश में पैदा होने के बाद भी इन्हें नहीं मिला वोट डलाने का अधिकारी,अब पहली बार करेंगे मतदान

locationग्वालियरPublished: Oct 12, 2018 06:05:17 pm

Submitted by:

monu sahu

देश में पैदा होने के बाद भी इन्हें नहीं मिला वोट डलाने का अधिकारी,अब पहली बार करेंगे मतदान

MP Election date 2018

Political parties ignore, traders demand stake in politics

ग्वालियर। देश में पैदा हुए और पिछले तीस सालों से बायपास सर्किट हाउस के सामने झोपड़ों में रह रहे लोहपीटा समुदाय में चुनाव की चर्चा छेड़ते ही आंखों में चमक साफ दिखाई देने लगती है। क्योंकि 60 साल तक की उम्र पूरी करने के बाद उन्हें पहली बार 28 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों में पहली बार मतदान करने का मौका मिलने जा रहा है। घुमक्कड़ समुदाय के ये लोग करीब तीन दशक पहले यहां पर रोजी रोटी की तलाश में आए थे और यहीं पर बस गए। गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले उक्त समुदाय को लंबे समय तक बीपीएल कार्डतक जारी नहीं किए। मतदाता सूची में नाम नहीं होने के कारण वे आज तक मतदान भी नहीं कर पाए।
दो सौ से अधिक संख्या वाले इस डेरे पर 60 साल की आयु पूरी कर चुके लोगोंं की संख्या दो दर्जन से अधिक है। लेकिन ये मतदान से हमेशा दूर रहे। जयसिंह बताते हंै कि डेढ़ साल पहले तत्कालीन कलेक्टर डा. इलैया राजा आए और बस्ती के लोगोंं से मतदाता पहचान पत्र और बीपीएल कार्ड के बारे में जानकारी ली थी। दूसरे दिन दो पटवारी आए और आधार के लिए उंगलियो के निशान लिए गए।
करीब दो माह बाद वोटरकार्ड और बीपीएल कार्ड दे गए। उनकी पहल पर ही बस्ती के ३६ लोगों को पीएम आवास स्वीकृत किए गए थे। भानुमति कहती है कि अनपढ़ होने के कारण अधिकारों की जानकारी ही नहीं है। जागरूकता लाने का भी कभी प्रयास नहीं किया गया। अधिकांश लोगों को तो यह भी पता नहीं है कि वोट डाला कैसे जाता है और वोट डालने से होता क्या है। स्वीप प्लान के तहत चलाए जा रहे अभियान में शासकीय एमजेएस कालेज के छात्र इन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
नहीं पता कैसे होती है वोटिंग
लोहे की कटोरियां बनाने वाली 50 वर्षीय भोला देवी को जैसे ही मतदाता पहचान पत्र को लेकर चर्चा की गई तो वैसे ही उनकी आंखों में चमक दिखाई दी। मुस्कराते हुए बोली सहाब-पहली बार मतदान करने का मौका मिल रहा है। इससे पहले किसी ने नहीं सुनी। हमें तो यह भी पता नहीं है कि वोट कैसे डाला जाता है और क्या होता है। पिछले तीन चार दिन से नेता लोग हमारे पास आने लगे है। पहले हसिया,खुरपियों में धार रखवाने के लिए किसान ही आते थे।
आवास मिले, लेकिन पैसा नहीं पूरा
35 वर्षीय हरिकंठ कहते हैं कि एक साल पहले उन्हें पीएम आवास स्वीकृत हुआ था। तीन बार में आवास निर्माण कराने के लिए २ लाख रुपए मिल चुके हैं। चौथी किस्त के रूप में 50 हजार मिलने है। लेकिन आवास का निर्माण पूरा कराने के लिए करीब एक लाख की जरूरत है। रोजगार चल नहीं रहा। पैसा है नहीं,समझ में नहीं आता कि मकान पूरा कैसे होगा। हरिकंठ चार बच्चों और पत्नी सहित टपरे में रहते हैं। बरसात के मौसम में रात आंखों में ही कटती है।
नहीं पानी-बिजली की व्यवस्था
60साल की आयु पूरी कर चुके राजेंद्रसिंह कहते हंै कि सरकार ने जहां पर पीएम आवास दिया है वहां जाने के लिए न तो रास्ता है और न ही पानी बिजली की व्यवस्था। वहां चले गए तो रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो जाएगा। पुलिस कर्मीरोज आते हैं और यह स्थान खाली करने के लिए कह जाते हैं। मकान पूरा कराने के लिए पैसा है नहीं,अब हमारे सामने संकट पैदा हो गया है। सरकार को हमारी समस्या समझनी चाहिए।
बच्चों के भविष्य की सता रही चिंता
40 वर्षीय रेखा देवी कुछ जागरूक है। समस्याओं की बात छेड़ते ही बोली-सहाब हमारी बस्ती में आधा सैकड़ा से अधिक ६ से १६ साल तक के बच्चे हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश स्कूल नहीं जा रहे हैं। आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं है। प्राइवेट स्कूल की फीस इतनी महंगी है कि गरीबो की सामर्थ ही नहीं है। बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। जिस राह से हम गुजर चुके हंै उससे हमारे बच्चों को न गुजरना पड़े ये हमारी चिंता है।
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